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इतिहास और परम्परा]
त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त
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अनुसार उसे चलते, खड़े, सोते, जागते सदा-सर्वदा ज्ञान प्रत्युपस्थित रहता है। तो भी वह सूने घर में जाता है और वहाँ भिक्षा नहीं पाता। उसे कुक्कुट भी काट खाता है। चण्ड हाथी, चण्ड घोड़े और चण्ड बैल से भी उसका सामना हो जाता है। सर्वज्ञ होने पर भी वह स्त्री-पुरूषों के नाम-गोत्र पूछता है, ग्राम निगम का नाम और मार्ग पूछता है । जब उन्हें यह पूछा जाता है कि सर्वज्ञ होकर आप क्या कहते हैं, तो वे उत्तर देते हैं-'सूने घर में जाना हमारा प्रारब्ध था, अतः गये । भिक्षा न मिलना भी प्रारब्ध था, अत: न मिली । कुक्कुट का काटना भी प्रारब्ध था,। चण्ड हाथी, घोड़े और बैल का मिलना भो प्रारब्ध था।' सन्दक ! विज्ञ पुरुष का तब यह चिन्तन उभरता है कि जहाँ शास्ता ऐसे दावा करते हैं, वहाँ ब्रह्मचर्य-वास अनाश्वासिक है और उससे उसका मन उदास होकर हट जाता है । यह प्रथम अनाश्वासिक-ब्रह्मचर्यवास है।"
इसी प्रकार आयुष्मान् आनन्द ने द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ आनाश्वासिक ब्रह्मचर्यवास का वर्णन किया और चतुर्थ में संजय वेलट्ठिपुत्त के बाद का उल्लेख किया।
-मज्झिम निकाय, सन्दक सुत्तन्त, २-३-६ के आधार से।
समीक्षा
यहां अजित केशकम्बली आदि चार को अब्रह्मचर्य वास में माना है । अब्रह्मचर्य-वास का अभिप्राय है- असंन्यास । महावीर को अनाश्वासिक ब्रह्मचर्य-वास में माना है अर्थात् वह संन्यास तो है, पर, निर्वाण का आश्वासन देने वाला नहीं। कुल मिला कर यह तो कहा ही जा सकता है, बुद्ध की दृष्टि में निगण्ठ नातपुत्त अन्य धर्मनायकों की अपेक्षा तो श्रेष्ठ ही थे।
सर्वज्ञता-सम्बन्धी समुल्लेखों की समीक्षा प्राक्तन प्रकरणों में की जा चुकी है।'
३१. विभिन्न मतों के देव
एक बार भगवान् बुद्ध राजगृह के वेलुवन कलन्दक निवाप में विहार कर रहे थे। दूसरे मतावलम्बी श्रावक देवपुत्र, असम, सहली, निक, आकोटक, बेटम्बरी और माणव गामिय रात बीतने पर वेलुवन को चमत्कृत करते हुए भगवान् के पास आये और अभिवादन कर एक और खड़े हो गये।
___असम देवपुत्र ने पूरण कस्सप की स्तुति में कहा- “यदि कोई पुरुष किसी को मारता है या किसी को नष्ट करता है तो पूरण कस्सप उसमें कोई पुण्य-पाप नहीं समझते। उनके बताये हुए सिद्धान्त विश्वसनीय हैं। वे महान सम्मान के पात्र हैं।"
सहली देवपुत्र ने मक्खलि गोशाला की स्तुति में कहा-"वे कठिन तपश्चरण और पाप-जुगुप्सा से संयत, मौनी, कलह-त्यागी, शान्त, दोष-विरत, सत्यवादी है । उनके जैसे पुरुष कभी पाप नहीं कर सकते।"
निक देवपुत्र ने निगण्ठ नातपुत्त की स्मृति में कहा-"वे पापों से घृणा करने वाले, चतुर, भिक्षु, चार यामों से सुसंवृत्त हैं । दृष्ट व श्रुत का आख्यान करते हैं। उनमें क्या पाप का अवकाश हो सकता है ?"
' देखें- 'कैवल्य और बोधि' प्रकरण के अर्न्तगत 'अवलोकन' (पृ० १९२-३)
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