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इतिहा और परम्परा]
त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त
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लेश्या-सिद्धान्त के अनुसार वैमानिक देवों में वर्ण की अपेक्षा से क्रमशः तीन शुभ लेश्याएं हैं। आगमिक उल्लेख के अनुसार आजीवक भिक्षु मृत्यु के पश्चात् बारहवें स्वर्ग तक भी पहुँच सकते हैं। तात्पर्य हुआ, वे तेजस्, पम और शुक्ल; तीनों शुभ लेश्याएँ पा सकते हैं । आजीवकों के कथनानुसार निगण्ठ लोहित और हरिद्र अभिजाति में हैं ही। तेजस् और पप-लोहित और हरिद्रा वर्ण के ही पर्यायवाची हैं।
डॉ. हर्मन जेकोबी तथा डॉ. बाशम का अभिमत है कि महावीर ने लेश्याओं का सिदान्त गोशालक को अभिजातियों पर ही खड़ा किया है। पर, कल्पना से अधिक उसका कोई आधार नहीं लगता। महावीर की लेश्याओं से गोशालक ने छः अभिजातियाँ ली हों, यह भी तो उतनी ही सम्भव कल्पना है । 'महावीर ने गोशालक से बहुत कुछ सीखा' इस विचार का निराकरण 'गोशालक' प्रकरण में किया ही जा चुका है। डॉ० बाशम का तर्क है कि लेश्या सिद्धान्त बहुत विस्तृत और व्यवस्थित है, इसलिए भी सोचा जा सकता है कि वह छः अभिजातियों का विकसित रूप है। सम्भव स्थिति तो यह लगती है कि पार्श्व-परम्परा के अनेक सिद्धान्त आजीवक, बौद्ध, जैन आदि श्रमण-परम्पराओं में आये हैं, उनमें एक यह भी हो सकता है।
पौड मभिजातियां
पुरुषों के कर्म के आधार पर वर्गीकरण का विचार उस समय बहुत प्रचलित था। गोशालक और महावीर की तरह बुद्ध ने भी वैसा वर्गीकरण किया । आनन्द ने पूरणकस्सप द्वारा अभिहित छः अभिजातियों के विषय में बुद्ध से पूछा, तो उन्होंने कहा- यह मूर्ख और अबुद्धिमान लोगों के लिए है। मैं छ: अभिजातियां इस प्रकार कहता हूँ
१. कृष्ण अभिजाति-कृष्णधर्म-कोई पुरुष नीच कुल में पैदा होता है; चण्डालकूल में, वेन-कल में निषाद-कूल में, रथकार-कूल में, पूक्कस-कूल में, दरिद्र और बडी तंगी से रहने वाले निर्धन-कुल में, जहाँ खाना-पीना बड़ी तंगी से मिलता है। वह दुर्वर्ण, न देखने लायक, नाटा और मरीज होता है। वह काना, लूल्हा, लँगड़ा या लुंज होता है । उसे अन्न, पान, वस्त्र, सवारी, माला, गन्ध, विलेपन, शय्या, घर, प्रदीप कुछ प्राप्त नहीं होता है।
वह शरीर से दुराचरण करता है, वचन से दुराचरण करता है, मन से दुराचरण करता है। इन दुराचरणों के कारण यहाँ से मर कर अपाय में पड़, बड़ी दुर्गति को प्राप्त करता है। यह 'कृष्ण-अभिजाति-कृष्ण-धर्म' वाला है। * २. कृष्ण-अभिजाति-शुक्ल-धर्म-कोई पुरुष नीच कुल ..... प्राप्त नहीं होता।
वह शरीर से सदाचार करता है, वचन से सदाचार करता है, मन से सदाचार करता
१. देखें ‘गोशालक' प्रकरण के अन्तर्गत, पृ० ४२-३१ । २. डॉ० बाशम ने 'हरिद्रा' का अर्थ 'हरा' (Green) किया है। (OP. cit p. 243);
वस्तुतः 'हरिद्रा' का अर्थ 'पीत, होना चाहिए। R. S. B. E., vol XIV, introduction, p. XXX. ४, OP. citi, p. 245.
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