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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ पंचम शुक्ल अभिजाति में गिनाये गये आजीवक आजीवकिनियों का अर्थ डॉ० बाशम ने 'आजीविक भिक्ष और भिक्षुणियों किया है, जबकि डॉ० हेर ने 'आजीवक और उनके अनुयायी' किया है । डॉ० हेर का अर्थ अधिक संगत लगता है। : লয়া जैन परम्परा की छः लेश्याएँ भाव-भाषा में छ: अभिजातियों के साथ बहुत कुछ समानता रखती हैं। इनके नाम हैं-कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजो लेख्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या । विचार और प्रवृत्ति की दृष्टि से प्राणियों का विभागीकरण छः लेश्याओं में निम्न प्रकार से होता है पाँच आस्रवों में प्रवृत्त, तीनों गुप्तियों से अगुप्त, षट्काय की हिंसा में आसक्त, उत्कट भावों से हिंसा करने वाला, क्षुद्र बुद्धि, बिना विचारे कार्य करने वाला, निर्दयी, नृशंसपाप कृत्यों में शंका-रहित और अजितेन्द्रिय मनुष्य कृष्ण लेश्या के अन्तर्गत हैं। ईर्ष्यालु, कदाग्रही, असहिष्णु, अतपस्त्री, अविद्वान्-~अज्ञानी, मायावी, निर्लज्ज, विषयी-लम्पट, द्वेषी, शठ-धूर्त, प्रमादी, रसलोलूपी, सुख-गवेषक, आरम्भी, अविरत, क्षुद्र और साहसिक मनुष्य नील लेश्या के अन्तर्गत हैं। वक्र वचन बोलने वाला, वक्र आचरण करने वाला, छल करने वाला, असरल, अपने दोषों को छिपाने वाला, मिथ्यादृष्टि, अनार्य, मर्म-भेदक दुष्ट वचन बोलने वाला, चोरी व असूया करने वाला मनुष्य कापोत लेश्या के अन्तर्गत है। __ नम्रतायुक्त, अचपल, अमायी, अकुतूहली, विनययुक्त, दान्त, स्वाध्याय में रत, उपधान आदि तप करने वाला, धर्मप्रेमी, दृढ़धर्मा, पापभीरु तथा हितैषी-मुक्ति-पथ का गवेषक मनुष्य तेजी लेश्या के अन्तर्गत है। ___ अल्प क्रोध, मान, माया, लोभ वाला, प्रशान्त चित्त, दान्तात्मा, योग और उपधान वाला, अत्यल्पभाषी, उपशान्त और जितेन्द्रय मनुष्य पद्मलेश्या के अन्तर्गत हैं। आतं-रौद्र ध्यानों को त्याग कर धर्म-शुक्ल ध्यानों का आसेवन करने वाला, प्रशान्त चित्त, दान्तात्मा, पांच समितियों से समति, तीन गुप्तियों से गुप्त, अल्परागवान् अथवा वीतरागी, उपशान्त और जितेन्द्रिय पुरुष शुक्ल लेश्या के अन्तर्गत हैं। ___ आगम-साहित्य में लेश्याओं का एक व्यवस्थित और विस्तृत सिद्धान्त है । पृथकपृथक लेश्याओं के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श बताये गये हैं। द्रव्य लेश्या, भाव लेश्या आदि भेद बताये गये हैं । देव, नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य आदि में कितनी-कितनी लेश्याएं सम्भव हैं, इसका पूरा ब्यौरा है। इनमें प्रथम तीन अशुभ हैं और अग्रिम तीन शुभ हैं । छ: अभिजातियों का इतना व्यवस्थित और विस्तृत स्वरूप कहीं नहीं मिलता। १. White (Sukka)-Ajivikas and Ajivinis (the latter called in the Anguttara Ajivikiniyo). Ajivika ascetics of both sexes. -0p. cit., p. 243. २. Fakirs and their disciples, -op. cit., d. 273. ३. उत्तराध्ययन सूत्र, अ० ३४, गा० २१-३२ । ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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