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इतिहास और परम्परा]
त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त
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चतुर्थ हरिद्र अभिजाति में गिही ओदातवसना अचेलक सावका ऐसा पाठ है। डॉ० बाशम ने इसका अर्थ 'अचेलकों के शिष्य-श्वेत वस्त्रधारी शिष्य' किया है।' 'अचेलक' शब्द से उन्होंने आजीवकों का ग्रहण किया है। उनका कहना है--"अन्य सभी भिक्षुओं से आजीवक गृहस्थों को यहाँ ऊँचा बताया गया है।" इस पाठ से आचार्य बुद्धघोष ने 'निर्ग्रन्थ श्रावकों' का अर्थग्रहण किया है । उनका अभिमत है—निर्ग्रन्थ गृहस्थ श्रावक आजीवक भिक्षुओं को भी दान देते थे; अत: उनका स्थान निर्ग्रन्थ भिक्षुओं से भी ऊँचा रखा गया है। डॉ० हेर के अनुसार इस पाठ का अर्थ है-'श्वेत वस्त्रधारी गृहस्थ और नग्न साधुओं के अनुयायी।"५ कुल मिला कर यथार्थ तो यह लगता है कि 'अवदातवसन-गृही' और 'अचेलक श्रावक' ये दो शब्द हैं । गिही ओदातवसना पाठ सामगाम सुत्त, पासादिक सुत्त व संगीति पर्याय-सुत्त में भी आया है और वहाँ निगंठ नातपुत्तस्य सावका उनका परिचायक विशेषण है। इससे यह फलित सहज ही स्पष्ट हो जाता है कि ये 'अवदातवसन-गही' भी निगण्ठ नातपत्त के श्रावक हैं। यह कहना कठिन है कि बौद्ध परम्परा का यह समुल्लेख कौन से श्रावक समुदाय की ओर संकेत करता है। क्योंकि जैन-साहित्य में श्वेत-वस्त्रधारी गृहस्थ श्रावकों का कोई उल्लेख नहीं है। हो सकता है, स्थविरकल्पी मुनियों के लिए यह संकेत हुआ हो । प्रमुखता जिनकल्पी साधुओं की रही हो; अतः उन्हें निग्रंन्थ शिष्य तथा स्थविरकल्पी मुनियों को श्वेतवस्त्रधारी गृहस्थ शिष्य कह दिया हो । यद्यपि 'अचेलक.श्रावक' का अर्थ डॉ० हेर ने 'अचेलकअनुयायी' किया है, पर, यहाँ श्रावक शब्द का अर्थ 'अचेलक भिक्षुओं का अनुयायी' ही होना चाहिए। बौद्ध परम्परा में 'श्रावक' शब्द भिक्षु और उपासक ; इन दोनों अर्थों में प्रयुक्त होता है। नग्न भिक्षुओं का अर्थ 'निर्ग्रन्थ भिक्षु' ही इसलिए संगत होता है कि आजीवक भिक्षुओं को तो पांचवीं अभिजाति में पृथक् से गिना ही दिया गया है।
8. The householder clad in white robs, the disciples of the Achelakas.
-op. cit. p. 139. २. bid. p. 243 3. This passage also has its obscurities, but seems to refer to
Ajivika laymen who are promoted above the ascetics of other communities.
-op. cit. p. 243. ४. अयं अत्तनो पच्चय-दायके निगंठे हि पि जेट्ठकतरे करोति ।
--सुमंगलविलासिनी, खण्ड १, पृ० १६३ तथा Basham op. cit. p. 139. ५. White robed householders and followers of naked ascetics,
--The Book of Gradual Sayings, vol. III, p. 273. ६. मज्झिम निकाय, ३-१-५। ७. दीघ निकाय, ३।६। ८. वही, ३।१०।
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