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४१४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १ मूलतः गोशालक से है और यही तो कारण है कि अभिजातियों में सर्वोपरि स्थान आजीवकों और आजीवक-प्रवर्तकों का रहा है।
डॉ० बाशम का अभिमत है—पूरण कस्सप वयोवृद्ध धर्म-नायक था। गोशालक उस समय तरुण था। पूरण कस्सप ने अपने मत का ह्रास और गोशालक के मत का उदय देख
• नवोदित मत की श्रेष्ठता स्वीकार कर ली। वह छः अभिजातियों का समुल्लेख भी करने लगा।
डॉ० बाशम की यह धारणा यदि सही है, तब तो त्रिपिटक-साहित्य में पूरण कस्सः के नाम से अभिजातियों का उल्लेख होना स्वाभाविक है ही, जैसा कि प्रस्तुत प्रकरण में हुआ है।
अर्थभेद
अभिजातियों के अर्थ में भी कुछ-कुछ भेद डाला जाता है । तीसरी लोहित अभिजाति में निगंठा एकशाटका' ऐसा पाठ है। डॉ० हेर ने अपने अंग्रेजी अनुवाद में उसका अर्थ 'जैन
और कौपीन (एक वस्त्र) धारी लोक' किया है। डॉ० बाशम', डॉ. हर्नले* और आचार्य बुद्धघोष ने इसका अर्थ 'एक वस्त्र पहनने वाले निम्रन्थ' किया है और यही यथार्थता के अधिक समीप लगता है। अन्यत्र भी सर्वत्र निर्ग्रन्थों का उल्लेख बौद्ध-साहित्य में मिलता है।
8. We may tentatively reconstruct the relations of the prophets as
follows: Purana, a heretical leader of long standing, maintaining a fatalistic doctarine with tendencies to antionomianism, came in contant with Makhali Gosala, a younger teacher with doctrines much the same as lis own, but with a more successful appeal to the public, recognising his eclipse, adimitted the superiority of the new teacher and accepted the sixfold classification of men.
-bid.p. 90 २. Jains and loin cloth folk.
--The Book of Gradual Sayings vol. III, p. 273 ३. Red (Lohita)-niganthas, who wear a single garment.
-~-Op. cit., p. 243. ४. Encyclopaedia of Religion and Ethics, vol. I, p.262. ५. The Book of Kindred Sayings, vol. III, p. 17 fin. ६. E.W. Burlinghame, Budhist Legends, vol. III, p. 176.
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