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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : १
है । इन सदाचारों के कारण यहाँ से मर कर स्वर्ग में उत्पन्न हो सुगति को प्राप्त करता है । यह 'कृष्ण- अभिजाति - शुक्ल धर्म' वाला है ।
३. कृष्ण अभिजाति-न कृष्ण, न शुक्ल (धर्म) अर्थात् निर्वाण को प्राप्त करने वाला - कोई पुरुष नीच कुल में पैदा होता है और दाढ़ी-केश मुंडवा कर, घर से बेघर हो प्रव्रजित होता है और नाना साधनाओं से निर्वाण प्राप्त करता है । यह कृष्ण अभिजातिनिर्वाण -न शुक्ल, न कृष्ण प्राप्त करने वाला है ।
४. शुक्ल अभिजाति – कृष्ण धर्म – कोई पुरुष ऊँचे कुल में उत्पन्न होता है, ऊँचे क्षत्रिय कुल में, ब्राह्मण कुल में गृहपति कुल में, धनाढ्य, महाधन, महाभोग वाले कुल में। वह सुन्दर, दर्शनीय, साफ और बड़ा रूपवान् होता है । अन्न-पान यथेच्छ लाभ करता है । वह शरीर से दुराचरण आदि कर दुर्गति को प्राप्त होता है ।
५. शुक्ल अभिजाति - शुक्ल-धर्म- कोई पुरुष ऊँचे कुल में उत्पन्न हो, शरीर से सदाचार आदि कर सुगति को प्राप्त होता है ।
६. शुक्ल अभिजाति - निर्वाण अर्थात् न कृष्ण, न शुक्ल — कोई पुरुष ऊँचे कुल में उत्पन्न हो, प्रव्रजित हो कर निर्वाण प्राप्त करता है।
गोशालक की अभिजातियाँ वर्तमान जीवन से ही सम्बन्धित हैं, जब कि महावीर का लेश्या विचार तथा बुद्ध की अभिजातियाँ परलोक से भी सम्बन्धित हैं । बुद्ध ने छ: अभिजातियाँ कहाँ से लीं, इसका उत्तर अपने आप में स्पष्ट है ही कि वातावरण में अभिजातियाँ की चर्चा थी; अतः बुद्ध ने भी प्रकारान्तर से उनका निरूपण किया ।
२६. सच्चक निगण्ठपुत्र
एक समय भगवान् गौतम वैशाली की महावन की कूटागारशाला में विहार कर रहे थे । भगवान् पूर्वाह्न के समय वस्त्र धारण कर, पात्र चीवर ले भिक्षा के लिए वैशाली में प्रविष्ट होना चाहते थे । सच्चक निगण्ठपुत्र जंघा - विहार के लिए अनुविचरण करता हुआ कूटागारशाला में गया | आयुष्मान् आनन्द ने उसे दूर से ही आते हुए देखा । भगवान् को इसकी सूचना दी और कहा - "भन्ते ! सच्चक निगण्ठपुत्र आ रहा है। यह बहुत प्रलापी, पण्डितमानी व बहुजन सम्मानित है । यह बुद्ध, धर्म व संघ की निन्दा चाहने वाला है । अच्छा हो, यदि थोड़े समय भगवान् कृपा कर यहीं ठहरें ।" भगवान् बिछे आसन पर बैठ गये । सच्चक निगण्ठपुत्र भगवान् के पास आया । भगवान् से यथायोग्य कुशल प्रश्न पूछ कर एक ओर बैठ गया । नाना टेढ़े मेढ़े प्रश्न पूछे और गहरी चर्चा चली। भगवान् बुद्ध ने उन सबका ही सविस्तार उत्तर दिया । गौतम बुद्ध के उत्तरों से वह बहुत प्रभावित हुआ । उसने कहा-" आश्चर्य है, भो गौतम ! अद्भुत है, मो गौतम ! मैंने आपको चिढ़ा-चिढ़ा कर ताने दे दे कर चुभने वाले वचन प्रयोग से प्रश्न पूछे, किन्तु आपका मुख वर्ण वैसा ही स्वच्छ व प्रसन्न है, जैसा कि अर्हत् सम्यक् सम्बुद्ध का होता है । गौतम ! मैंने पूरणकस्सप मक्खलि गोशाल अजित के सकम्बली, पकुध कच्चायना संजय वेलट्ठिपुत्र व निगण्ठ नातपुत्त के साथ भी शास्त्रार्थ किया है । वे दूसरी- दूसरी बातें ही करते हैं, विषय से बाहर निकल जाते हैं और कोप, द्वेष तथा अप्रसन्नता प्रकट करने लगते हैं । किन्तु आपको मैंने इतना चिढ़ा-त्रिढ़ा कर भी कहा, तथापि आपका मुख वर्णं स्वच्छ व प्रसन्न है । गौतम ! अब हम जायेंगे। हमें बहु- करणीय हैं ।"
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