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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड: "भन्ते ! उपाश्रय में सामायिक-व्रत करते श्रावक की भार्या का कोई अन्य पुरुष भोग करता है, तो वह उसकी भार्या को भोगता है या अभार्या को ?"
"गौतम ! वह उसकी भार्या को भोगता है।" "भन्ते ! शीलव्रत, गुणवत, पोषधोपवास आदि के समय क्या भार्या अभार्या नहीं
होती ?"
“गौतम ! होती है।" "भन्ते ! तो यह कैसे कहा गया कि वह उसकी भार्या को भोगता है ?"
"गौतम ! शीलवत, पौषधोपवास आदि के समय श्रावक के मन में यह विचार होता है--'यह मेरी माता नहीं है, यह मेरा पिता नहीं है, यह मेरा भाई नहीं है, यह मेरी बहिन नहीं है, यह मेरी स्त्री नहीं है, यह मेरा पुत्र नहीं है, यह मेरी पुत्री नहीं है, यह मेरी पुत्र-वधू नहीं है।' गौतम ! यह सोचते समय भी उसका प्रेम-बन्धन न्युच्छिन्न नहीं होता। इसलिए अन्य पुरुष उसकी भार्या का ही भोग करता है।"
कुल मिला कर ये सब आपेक्षिक कथन हैं। संगत अपेक्षा में सोचने से ये सब संगत हैं और असंगत अपेक्षा में सोचने से ये सब विरूप लगते हैं।
बौद्धों ने प्रस्तुत सुत्त में असंगत अपेक्षाएँ सामने रख कर निगण्ठ उपोसथ का उपहास किया है।
२८. छः अभिजातियों में निर्ग्रन्थ
एक बार भगवान् राजगृह में गृध्रकूट पर्वत पर विहार करते थे। आयुष्मान् मानन्द भगवान् के समीप आए, अभिवादन किया और एक ओर बैठ गए। एक ओर बैठे आनन्द ने भगवान से कहा-"भन्ते ! पूरण कस्सप ने छः अभिजातियों का निरूपण किया हैकृष्ण अभिजाति, नील अभिजाति, लोहित अभिजाति, हरिद्र अभिजाति, शुक्ल अभिजाति और पस्म शुक्ल अभिजाति ।
पूरण कस्सप ने कृष्ण अभिजाति में कसाई, आखेटक, लुब्धक, मत्स्य-घातक, चोर, लुण्टाक, कारागृहिक और इस प्रकार के अन्य क्रूर कर्मान्तक लोगों को गिनाया है।
नील अभिजाति में कण्टकवृत्तिक भिक्षुक और अन्य कर्मवादी, क्रियावादी लोगों को गिनाया है।
लोहित अभिजाति में एक शाटक (एक वस्त्रधारी) निर्ग्रन्थों को गिनाया है।
हरिद्र अभिजाति में श्वेत वस्त्रधारी गृहस्थ व अचेलक (निर्ग्रन्थ) श्रावकों (भिक्षुओं) को गिनाया है।
शुक्ल अभिजाति में आजीवक और उनके अनुयायियों को गिनाया है। परम शुक्ल अभिजाति में नन्द वत्स, कृश-सांकृत्य और मक्खलि गोशाल को गिनाया
-अंगुत्तर निकाय, ६-६-५७ के आधार से।
समीक्षा छः अभिजातियां यहां पूरण कस्सप के नाम से बताई गई हैं ; पर मूलतः यह गोशा.
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