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इतिहास और परम्परा
त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त
सभिय परिव्राजक के एक हितैषी देव ने उसे कुछ प्रश्न सिखाये और कहा--"जो श्रमणब्राह्मण इन प्रश्नों का उत्तर दे, उसी के पास तुम ब्रह्मचर्य स्वीकार करना।"
____सभिय परिव्राजक प्रातःकाल उठा। वह संघी, गणी, गणाचार्य, प्रसिद्ध, यशस्वी तीर्थङ्कर, बहुजन-सम्मत पूरण कस्सप, मक्खलि गोशाल, अजित केसकम्बली, पकुध कच्चायन, संजय वेल द्विपुत्त और निगण्ठ नातपुत्त के पास क्रमशः गया और उनसे प्रश्न पूछे। सभी तीर्थङ्कर उसके प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सके; अपितु वे कोप, द्वेष और अप्रसन्नता ही व्यक्त करने लगे तथा उल्टे उससे ही प्रश्न पूछने लगे । सभिय बहुत असंतुष्ट हुआ। उसका मन नाना ऊहापोहों से भर गया और उसने निर्णय किया-अच्छा हो, गृहस्थ होकर सांसारिक आनन्द लूटूं।
सभिय परिव्राजक के मन में ऐसा भी विचार उत्पन्न हुआ-श्रमण गौतम भी संघी, गणी, गणाचार्य बहुजन सम्मत हैं, क्यों न मैं उनसे भी ये प्रश्न पूछ्, उसका मन तत्काल ही आशंका से भर गया। उसने सोचा, पूरण कस्सप, मक्खलि गोशाल, अजित केसकम्बली, पकुध कच्चायन, संजय वेलठ्ठिपुत्त और निगण्ठ नातपुत्त जैसे जीर्ण, वृद्ध, वयस्क, उत्तरावस्था को प्राप्त, वयोतीत, स्थविर, अनुभवी, चिर प्रवजित, संघी, गणी, गणाचार्य, प्रसिद्ध, यशस्वी, तीर्थंकर, बहुजन-सम्मानित श्रमण-ब्राह्मण भी मेरे प्रश्नों का उत्तर न दे सके ; न दे सकने पर कोप, द्वेष व अप्रसन्नता व्यक्त करते हैं और मुझसे ही इनका उत्तर पूछते हैं। श्रमण गौतम क्या मेरे इन प्रश्नों का उत्तर दे सकेंगे? वे तो आयु में युवा और प्रव्रज्या में नवीन हैं। फिर भी श्रमण युवक होता हुआ भी महद्धिक और तेजस्वी होता है। अत: श्रमण गौतम से भी मैं इन प्रश्नों को पूछू।
सभिय परिव्राजक राजगृह की ओर चला। क्रमश: चारिका करता हुआ वेलुवन कलन्दक निवाप में भगवान् के पास पहुँचा। कुशल-संवाद पूछकर एक ओर बैठ गया। सभिय ने भगवान् से निवेदन किया--"भन्ते ! संशय और विचिकित्सा से प्रेरित होकर मैं प्रश्न पूछने के अभिप्राय से आया हूँ। धार्मिक-रीति से उत्तर देकर मेरी उन शंकाओं का निरसन
करें।"
बुद्ध ने उत्तर दिया- “सभिय ! प्रश्न पूछने के अभिप्राय से तुम दूर से आये हो। तुम एक-एक कर मुझसे पूछो। मैं उनका समाधान कर तुम्हें संशय-मुक्त कर सकता हूँ।"
सभिय परिव्राजक ने सोचा-आश्चर्य है ! अद्भुत है ! अन्य श्रमण-ब्राह्मणों ने जिन 'प्रश्नों के पूछने के लिए अवकाश तक नहीं दिया, वहाँ श्रमण गौतम मुझे उनके निरसन का विश्वास दिलाते हैं। प्रसन्न व प्रमुदित होकर उसने पूछना आरम्भ किया। ....... गौतम बुद्ध ने उनका सविस्तार उत्तर दिया। ...... सभिय परिव्राजक ने भगवान् के भाषण का अभिनन्दन किया, अनुमोदन किया और आनन्दित होकर आसन से उठा। उत्तरीय को एक कन्धे पर संभाल कर उसने भगवान् बुद्ध की स्तुति में कुछ गाथाएं कहीं । भगवान् के पादपद्मों में नतमस्तक होकर कहने लगा-'आश्चर्य है गौतम ! अद्भुत है गौतम ! जैसे औंधे को सीधा कर दे, आवृत को अनावृत्त कर दे, मार्ग-विस्मृत को मार्ग बता दे, अन्धेरे में तेल का दीपक जला दे, जिससे सनेत्र देख सकें, उसी प्रकार आप गौतम ने अनेक प्रकार से धर्म को प्रकाशित किया है। मैं भगवान गौतम की शरण ग्रहण करता हूँ, धर्म व भिक्षु-संघ की भी। मैं आपके पास प्रव्रज्या तथा उपसम्पदा ग्रहण करना च
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