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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन तो उन्होंने क्या उत्तर दिया, बताओ।"
अजातशत्रु ने बताया- 'मैं पूरण कस्सप, मक्खलि गोशाल, अजित केसकम्बली, पकुध कच्चायन व संजय वेलठ्ठिपुत्त के पास गया । जैसे कि भन्ते ! पूछे आम और उत्तर दे कटहल ; पूछे कटहल और उत्तर दे आम । उसी प्रकार भन्ते ! उन सभी ने सांदृष्टिक श्रामण्यफल पूछे जाने पर क्रमशः अक्रियवाद, दैववाद, उच्छेदवाद, अकृतावाद व अनिश्चिततावाद' का उत्तर दिया। मैंने उनके कथन का न तो अभिनन्दन ही किया और न निन्दा ही की। मैंने उनके सिद्धान्त को न स्वीकार ही किया और न निरादर ही किया। आसन से उठकर चला आया।
"भन्ते ! मैं निगण्ठ नातपुत्त के पास भी गया और उनसे भी सांदृष्टिक श्रामण्य-फल के बारे में पूछा। उन्होंने उसके उत्तर में मुझे चातुर्याम संवरवाद बतलाया। उन्होंने कहा'निगण्ठ चार संवरों से संवृत्त रहता है-1. वह जल के व्यवहार का वर्जन करता है, जिससे जल के जीवन मर, २. वह सभी पापों का वर्जन करता है, ३. सभी पापों के वर्जन से धूतपाप होता है और ४. सभी पापों के वर्जन में लगा रहता है। इसीलिए वह निर्ग्रन्थ, गतात्मा, यतात्मा और स्थितात्मा कहलाता है।' भन्ते ! मेरा प्रश्न तो था, प्रत्यक्ष श्रामण्य फल के बारे में और निगण्ठ नात पुत्त ने वर्णन किया चार संवरों का। भन्ते ! यह भी वैसा ही था, जैसे पूछे आम और उत्तर दे कटहल ; पूछे कटहल और उत्तर दे आम। मैंने उनके कथन का भी न अभिनन्दन किया और न ही निन्दा की। उनके सिद्धान्त को न मैंने स्वीकार किया और न उसका निरादर ही किया। आसन से उठकर चला आया।"
बुद्ध ने राजा अजातशत्रु के प्रश्न का दृष्टान्त, युक्ति व सिद्धांत के माध्यम से सविस्तार उत्तर दिया। अजातशत्रु उससे बहुत प्रभावित हुआ। बोला--"आश्चर्य भन्ते ! अद्भुत भन्ते ! जैसे उल्टे को सीधा कर दे, आवृत्त को अनावृत्त कर दे, मार्ग-विस्मृत को मार्ग बता दे, अंधेरे में तेल का दीपक दिखा देजिससे सनेत्रदेख सकें; उसी प्रकार भगवान् ने अनेक प्रकार से धर्म को प्रकाशित किया है। मैं भगवान् की शरण ग्रहण करता हूँ, धर्म व भिक्ष संघ की भी। आज से यावज्जीवन मुछे शरणागत उपासक स्वीकार करें।"
अजातशत्र ने अपना आत्मालोचन करते हुए कहा-"भन्ते ! मैंने एक बड़ा भारी अपराध किया है । मैंने अपनी मूढ़ता, मूर्खता और पापों के कारण राज्य लोभ से प्रेरित होकर धर्मराज पिता की हत्या की है । भन्ते ! भविष्य में संभलकर रहूँगा । आप मेरे जैसे अपराधी को क्षमा करें।"
बुद्ध ने उत्तर में कहा-'"चूंकि महाराज! तुम अपने पाप को समझकर, भविष्य में सावधान रहने की प्रतिज्ञा करते हो; अतः मैं तुमको क्षमा प्रदान करता हूँ। आर्य धर्म में यह वृद्धि (लाभ) की बात समझी जाती है, यदि कोई अपने पाप को समझकर और स्वीकार कर भविष्य में वैसा न करने और धर्माचरण करने की प्रतिज्ञा करता है।"
अजातशत्रु बुद्ध के कथन का अभिनन्दन व अनुमोदन कर आसन से उठा और वन्दनाप्रदक्षिणा कर चला आया । बुद्ध ने भिक्षुओं को सम्बोधित किया--"इस राजा का संस्कार अच्छा नहीं रहा। यह राजा अभागा है। यदि यह राजा अपने धर्मराज पिता की हत्या
१. इन मतवादों के विस्तृत उल्लेख के लिए देखें; 'समसामयिक धर्म नायक' प्रकरण । २. देखें; 'समसामयिक धर्म-नायक' प्रकरण ।
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