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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड: १
एक यह भी है। ठीक इसी प्रकार की एक कथा जैन परम्परा में भी बहुत प्रचलित है। उसके अनुसार राजा श्रेणिक बौद्ध मत को मानने वाला था और रानी चेलणा जैन मत को मानने वाली थी। दोनों एक-दूसरे को अपने धर्म में लाने के लिए प्रयत्नशील थे। श्रेणिक के आग्रह पर चेलणा ने बौद्ध भिक्षुओं को भोजन के लिए आमन्त्रित किया। भिक्षु आये। श्रेणिक उन्हें महाज्ञानी मानता था। चेलणा ने बौद्ध-गुरु की चर्म-उपानत् उठाकर मंगवा ली और उनकी कतरनें करके 'सांगरी का रायता' बनवा दिया। रायता अनेक सुगन्धित पदार्थों से भानित था। वह बौद्ध गुरुओं को बहुत अच्छा लगा। इस प्रकार वे अपनी सारी जूती रायते के साथ खा गये। लौटते समय जब बौद्ध-गुरु की जूती नहीं मिली, तब चेलणा ने सारा भेद खोला। बौद्ध भिक्षु बेचारे शरमायें। राजा श्रेणिक इस बात से बहुत क्रोधित हुआ और उसने प्रतिशोध लेने की बात मन में ठानी।
राजा ने एक दिन सायंकाल वन-क्रीड़ा से आते एक शून्य देवालय में एक निगण्ठ मुनि को ध्यानस्थ देखा । तत्काल एक वेश्या को बुला, उसे भी उस देवालय में बिठा दिया। राजमहल में जा, चेलणा से चर्चा की कि निगण्ठ मुनि वेश्याओं के साथ रात बिताते हैं। मैं सबेरे तुम्हें यह बात बताऊँगा। बात नगर में फैल चुकी थी। सबेरे राजा रानी को लेकर देवालय पर आया। सहस्रों लोग और भी इकट्ठे हुए। निगण्ठ मुनि राजा की इस करतूत को समझ चुका था। उसने अपने तपोबल से अपना रूप बदल कर बौद्ध भिक्षु का रूप बना लिया। दरवाजा खुलते ही बौद्ध भिक्षु और वेश्या सबको दिखलाई दिये। रानी की विजय हुई। राजा ने अपने धर्म का उपहास और घृणा-भाव नगर में करा लिया।
समीक्षा अन्य धर्मों के सम्बन्ध से भी इस प्रकार के अनेक कथानक दोनों परम्पराओं में मिलते हैं तथा इन दोनों परम्पराओं के सम्बन्ध में इतर धर्मों में भी ऐसे ही कथानक मिलते हैं। लगता है, कोई युग ही आया था। जिसमें ऐसे कथानक गढ़ने की होड़ लगी थी।
मिलिन्द पञ्हो में कहा गया है-गरहदिन्न के घर बुद्ध के धर्मोपदेश करते समय ५४००० व्यक्तियों को स्रोतापत्ति-फल मिला।' यह भी प्रस्तुत कथानक की अयथार्थता का एक प्रमाण है।
उल्लेख-प्रसंग
२२. श्रामण्य-फल
एक समय बुद्ध राजगृह में जीवक कौमार-भृत्य के आम्रवन में साढ़े बारह सौ भिक्षुओं के वृहद् संघ के साथ विहार कर रहे थे। पूर्णमासी के उपोसथ का दिन था। चातुर्मासिक कौमुदी से युक्त पूर्णिमा की रात को, राजा मगध अजातशत्रु वैदेहीपुत्र, राजअमात्यों से घिरा हुआ, उत्तम प्रासाद पर बैठा था। उस समय अजातशत्रु ने उदान कहा- "अहो ! कैसी
१. मिलिन्द प्रश्न, ३५० ।
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