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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : १
तक धार्मिक कथा से संदर्शित, समुत्तेजित और संप्रहर्षित कर विसर्जित किया । भिक्षु संघ को तृष्णीभूत देख कर भगवान् ने सारिपुत्त को आमंत्रित किया और निर्देश दिया - "सारिपुत्त ! भिक्षु संघ स्त्यान-मृद्ध रहित है । तुम उन्हें धर्म - कथा कहो । मेरी पीठ अगिया रही है, मैं लेदूंगा । "
सारिपुत्त ने बुद्ध का निर्देश शिरोधार्य किया । बुद्ध ने चोपेती संघाटी बिछवा, दहिनी करवट के बल, पैर पर पैर रख, स्मृति-संप्रजन्य के साथ उत्थान संज्ञा मन में कर सिंह- शय्या लगाई । निगण्ठ नातपुत्त की कुछ ही समय पूर्व पावा में मृत्यु हुई थी। उनके काल करने से निगण्ठों में फूट पड़ गई और दो पक्ष हो गये। दोनों विवाद में पड़, एक-दूसरे पर आक्षेपप्रत्याक्षेप करते हुए कह रहे थे - 'तू इस धर्म - विनय को नहीं जानता, मैं इस धर्म - विनय को जानता हूँ ।' 'तू इस धर्म को क्या जानेगा ?' 'तू मिथ्यारूढ़ है, मैं सत्यारूढ़ हूँ' । 'मेरा कथन -अर्थसहित है, तेरा नहीं है' ।' 'तू ने पहले कहने की बात पीछे कही और पीछे कहने की बात पहले कही' । 'तेरा विवाद बिना विचार का उल्टा है । तू ने वाद आरम्भ किया, किन्तु, निगृहीत, हो गया' । 'इस वाद से बचने के लिए इधर-उधर भटक' । 'यदि इस वाद को समेट सकता है, तो समेट' । निगण्ठों में मानो युद्ध ही हो रहा था ।
निगण्ठ नातपुत्त के श्वेत वस्त्रधारी गृहस्थ शिष्य भी नातपुत्तीय निगण्ठों में वैसे ही विरक्त चित्त हो रहे थे, जैसे कि वे नातपुत्त के दुराख्यात, दुष्प्रवेदित, अ-नैर्याणिक, अन्उपशम-संवर्तनिक, अ- सम्यक् सम्बुद्ध प्रवेदित, प्रतिष्ठा-रहित, आश्रय-रहित धर्म में हैं ।
आयुष्मान् सारिपुत्र ने भिक्षुओं को आमंत्रित किया और उन्हें निगंठ नातपुत्त की मृत्यु का संवाद तथा निगण्ठों की फूट की विस्तृत जानकारी देते हुए कहा - "हमारे भगवान् का यह धर्म सु-आख्यात, सुप्रवेदित, नैर्याणिक, उपशम-संवर्तनिक, सभ्यक्-सम्बुद्ध-प्रवेदित है । यहाँ सबको ही अविरुद्ध भाषी होना चाहिए । विवाद नहीं करना चाहिए, जिससे कि यह ब्रह्मचर्यं अध्वनिक ( चिरस्थायी ) हो और वह बहुजन हितार्थ, बहुजन सुखार्थ, लोक की अनुकम्पा के लिए तथा देव व मनुष्यों के हित व सुख के लिए हो ।'
दीघनिकाय, संगीति- पर्याय- सुत्त, ३ १०-१,२,३ के आधार से ।
१७. निगण्ठ नातपुत्त की मृत्यु का कारण
वह नातपुत्त तो नालन्दा-वासी था । वह पावा में कैसे कालगत हुआ ? उपालि गृहपति को सत्य का प्रतिबोध हुआ और उसने दस गाथाएं बुद्ध के उत्कीर्तन में कहीं। उस बुद्धकीर्ति को सहन न करते हुए नातपुत्त ने अपने मुँह से उष्ण रक्त उगल दिया । उस अस्वस्थ स्थिति में वह पावा ले जाया गया; अतः वहीं वह कालगत हुआ ।
-मज्झिम निकाय अट्ठकथा, सामगाम सुत्त वण्णना, खण्ड ४, पृ० ३४ के आधार से ।
समीक्षा
जैन कथा वस्तु में तो उक्त प्रकार की घटना का उल्लेख है ही नहीं । मूल मज्झिम
१. विशेष समीक्षा के लिए देखें, 'कालनिर्णय' प्रकरण के अन्तर्गत 'महावीर - निर्वाणप्रसंग ( पृ ८०-८२) ।
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