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________________ इतिहास और परम्परा ] १५. निर्वाण - संवाद - २ भगवान् बुद्ध शाक्य देश में वेधञ्ञा नामक शाक्यों के आम्र-वन- प्रसाद में बिहार कर रहे थे । निगण्ठ नातपुत्त की कुछ ही समय पूर्व पावा में मृत्यु हुई थी। उनकी मृत्यु के अनन्तर ही निगण्ठों में फूट हो गई, दो पक्ष हो गए, लड़ाई चल रही थी और कलह हो रहा था । निगण्ठ एक-दूसरे को वचन वाणों से बींधते हुए विवाद कर रहे थे – 'तुम इस धर्म - विनय को नहीं जानते, मैं इस धर्म - विनय को जानता हूँ । तुम भला इस धर्म-विनय को क्या जानोगे ? तुम मिथ्या प्रतिपन्न हो, मैं सम्यक् प्रतिपन्न हूँ। मेरा कहना सार्थक है, तुम्हारा कहना निरर्थक है । जो बात पहले कहनी चाहिए थी, वह तुमने पीछे कही ; जो पीछे कहनी थी, वह तुमने पहले कही । तुम्हारा विवाद बिना विचार का उल्टा है । तुमने वाद रोपा है, तुम निग्रहस्थान में आ गए। तुम इस आक्षेप से बचने के लिए यत्न करो, यदि शक्ति है तो इसे सुलझाओ।' मानो निगण्ठों में युद्ध हो रहा था । निगण्ठ नातपुत्त के श्वेत वस्त्रधारी गृहस्थ शिष्य भी नातपुत्तीय निगण्ठों में वैसे ही विरक्त-चित्त हो रहे थे, जैसे नातपुत्त के दुराख्यात, दुष्प्रवेदित, अनैर्याणिक, अन् उपशमसंवर्तनिक, अ- सम्यक् सम्बुद्ध प्रवेदित, प्रतिष्ठा रहित, भिन्न स्तूप, आश्रय-रहित धर्म में अन्यमनस्क, खिन्न और विरक्त हो रहे थे । त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त सुनायी । चुन्द समणुद्देस पावा में वर्षावास कर सामगाम में आयुष्मान् आनन्द के पास गए और उन्हें निगंठ नातपुत्त की मृत्यु तथा निगण्ठों में परिव्याप्त फूट की विस्तृत सूचना दी। आयुष्मान् आनन्द बोले – “आवुस चुन्द ! यह कथा भेंट रूप है । हम भगवान् के पास चलें और उनसे यह निवेदित करें।" चुन्द समणुद्देस आनन्द के साथ भगवान् बुद्ध के पास गए और उन्हें सारी कथा ३६१ - -दीघ निकाय, पासादिक सुत्त, ३१६ के आधार से । Jain Education International 2010_05 १६. निर्वाण चर्चा पावा-वासी मल्लों का उन्नत व नवीन संस्थागार उन्हीं दिनों बना था । तब तक वहाँ किसी श्रमण-ब्राह्मण ने वास नहीं किया था। भगवान् बुद्ध मल्ल में चारिका करते हुए पावा पहुँचे और चुन्द कर्मार पुत्र के आम्र-वन में ठहरे । जब पावा-वासी मल्लों को इसकी सूचना हुई तो वे उन्हें अपने संस्थागार के लिए आमंत्रित करने के लिए आए। उन्होंने निवेदन किया - " संस्थागार का सर्व प्रथम आप ही परिभोग करें। उसके अनन्तर उसका हम परिभोग करेंगे। यह हमारे दीर्घरात्र तक हित-सुख के लिए होगा ।" बुद्ध ने मौन रह कर स्वीकृति दी । मल्ल वापस शहर में आए। उन्होंने संस्थागार को अच्छी तरह सजाया । सब जगह फर्श बिछाया और आसन स्थापित किए। पानी के मटके रखे और तेल के दीपक जलाए । बुद्ध के पास आए और उन्हें सूचित किया । बुद्ध पात्रचीवर लेकर भिक्षु संघ के साथ संस्थागार में आये । पावा-वासी मल्लों को बुद्ध ने बहुत रात १. विशेष समीक्षा के लिए देखें, 'कालनिर्णय' प्रकरण के अन्तर्गत 'महावीर - निर्वाणप्रसंग' ( पृ० ८० - ८२ ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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