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________________ ३६० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ यह होता है। इसके न होने पर यह नहीं होता, इसके निरोध होने पर यह निरुद्ध होता है ।" -मज्झिमनिकाय, खूलसुकुलदायि सुत्तन्त, २-३-९ के आधार से | है । समीक्षा इस प्रकरण में 'कर्म - चर्चा' प्रकरण की तरह सर्वज्ञता की ही कुछ प्रकार भेद से चर्चा घटना-प्रसंग १४. निर्वाण - संवाद - १ एक बार भगवान् शाक्य देश में सामगाम में विहार करते थे । निगंठ नातपुत्त की कुछ समय पूर्व ही पावा में मृत्यु हुई थी। उनकी मृत्यु के अनन्तर ही निगंठों में फूट हो गई, दो पक्ष हो गये, लड़ाई चल रही थी और कलह हो रहा था । निगंठ एक-दूसरे को वचन - वाणों से बघते विवाद कर रहे थे. हुए 'तू इस धर्म - विनय को नहीं जानता, मैं इस धर्म - विनय को जानता हूँ' । 'तू मला इस धर्म-विनय को क्या जानेगा ? तू मिथ्यारूढ़ है, मैं सत्यारूढ़ हूँ" । मेरा कथन सार्थक है, तेरा कथन निरर्थक है' । 'पूर्व कथनीय बात तूने पीछे कही और पश्चात् कथनीय बात पहले कही' । 'तेरा वाद बिना विचार का उल्टा है' । 'तू ने वाद आरम्भ किया, किन्तु, निगृहीत हो गया'। 'इस वाद से बचने के लिए इधर-उधर भटक' । 'यदि इस वाद को समेट सकता है, तो समेट' । नातपुत्तीय निगण्ठों में मानो युद्ध ही हो रहा था । निगण्ठ नातपुत्त के श्वेत वस्त्रधारी गृहस्थ शिष्य भी नातपुत्तीय निगण्ठों में वैसे ही विरक्त-चित्त हो रहे थे, जैसे कि वे नातपुत्त के दुराख्यात, दुष्प्रवेदित, अनैर्याणिक, अन्-उपशम संवर्तनिक, अ-सम्यक् सम्बद्ध- प्रवेदित, प्रतिष्ठा-रहित, भिन्न स्तूप, आश्रय-रहित धर्म - विनय में थे । चुन्द समणुद्देस पावा में वर्षावास समाप्त कर सामगाम में आयुष्मान् आनन्द के पास आये और उन्हें निगण्ठ नातपुत्त की मृत्यु तथा निगण्ठों में हो रहे विग्रह की विस्तृत सूचना दी | आयुष्मान् आनन्द बोले – “आवुस चुन्द ! भगवान् के दर्शन के लिए यह कथा भेंट रूप है । आओ, हम भगवान् के पास चलें और उन्हें निवेदित करें।" आयुष्मान् आनन्द और चुन्द समणुद्देस भगवान् के पास आये । अभिवादन कर एक ओर बैठ गए। आयुष्मान आनन्द ने चुन्द समणुद्देस द्वारा सुनाया गया सारा घटना वृत्त भगवान् बुद्ध को सुनाया । १ - मज्झिमनिकाय, सामगाम सुत्तन्त, ३-१-४ के आधार से । १. विशेष समीक्षा के लिए देखें, 'काल-निर्णय' प्रकरण के अन्तर्गत 'महावीर - निर्वाणप्रसंग' ( पृ० ८०-८२ ) । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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