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________________ इतिहास और परम्परा] त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त ३६३ निकाय के उपालि सुत्त में भी इस घटना को महावीर की मृत्यु से नहीं जोड़ा गया है। यह नितान्त अट्ठकथा का ही परिवर्द्धन है। जैन उल्लेख के अनुसार महावीर राजगृह से विहार कर पावा जाते हैं। वहाँ वे वर्षावास करते हैं और कार्तिक अमावस्या को निर्वाण प्राप्त करते हैं। इतनी प्रलम्ब अस्वस्थता उनकी रही होती, तो अवश्य उसका कहीं उल्लेख मिलता। इस अवधि में उनकी अस्वस्थता का कहीं उल्लेख नहीं है। १८. दिव्य-शक्ति-प्रदर्शन उस समय राजगृह के एक श्रेष्ठी को एक महायं चन्दनसार की चन्दन गाँठ मिली। श्रेष्ठी ने सोचा-"क्यों न मैं इसका पात्र बनवाऊँ ? चूरा मेरे काम आयेगा और पात्र का दान करूँगा।" पात्र तैयार हुआ। श्रेष्ठी ने उसे सींके में रख कर, उस सीके को एक पर एक, इस प्रकार अनेक बाँस बाँध कर, सबसे ऊँचे बांस के सिरे पर लटका दिया। उसने यह घोषणा भी कर दी-"जो श्रमण, ब्राह्मण, अर्हत् या ऋद्धिमान् हो; उसे यह दान दिया जाता है । वह इस पात्र को उतार कर ले ले।" पूरणकस्सप श्रेष्ठी के पास आया और उसने अपने को अर्हत् व ऋद्धिमान् बतलाते हुए उस पात्र की याचना की। श्रेष्ठी ने कहा-'भन्ते ! यदि आप वस्तुतः अर्हत् व ऋद्धिमान हैं, तो पात्र को उतार कर ले लें। मैंने आपको दिया।" किन्तु पूरणकस्सप उसे उतारने में सफल नहीं हुआ। मक्खली गोशाल, अजित केसकम्बली, पकुध काच्यायन, संजय वेलट्टिपुत्त व निगण्ठ नातपुत्त भी क्रमशः श्रेष्ठी के पास आए और उन्होंने भी अपने को अर्हत् व ऋद्धिमान् बतलाते हुए पात्र की याचना की। श्रेष्ठी का उनको भी वही उत्तर मिला। पात्र को उतारने में कोई भी सफल नहीं हुआ। __ आयुष्मान मौग्गलान व आयुष्मान् पिण्डोल भारद्वाज पूर्वाह्न को सु-आच्छादित हो, पात्र-चीवर ले, राजगृह में भिक्षा के लिए प्रविष्ट हुए। उन्होंने भी पात्र-सम्बन्धी यह सारी घटना सनी। पिण्डोल भारद्वाज ने मौग्गलान को और मौग्गलान ने पिण्डोल भारद्वाज को पात्र उतार लाने के लिए कहा। पिण्डोल भारद्वाज इस कार्य के लिए तैयार हुए। वे आकाश में उड़े। उस पात्र को लिया और उस पात्र-सहित राजगृह के तीन चक्कर लगाये। श्रेष्ठी पुत्रदारा सहित अपने आवास पर चढ़ा। करबद्ध होकर नमस्कार किया और अपने आवास पर ही उतरने की उनसे प्रार्थना की। पिण्डोल भारद्वाज ने उस प्रार्थना को स्वीकार किया और वहीं उतरे । श्रेष्ठी ने उनके हाथ से पात्र लिया और महार्य खाद्य से उसे भर कर उन्हें भेंट किया। पिण्डोल भारद्वाज यात्र-सहित आराम को लौट आए। पात्र को उतार लाने की घटना कुछ ही क्षणों में शहर में फैल गई। कुछ लोग कोलाहल करते हुए ही पिण्डोल भारद्वाज के साथ-साथ आराम में प्रविष्ट हुए। बुद्ध ने जब उस कोलाहल को सुना, तो आयुष्मान् आनन्द से उसके बारे में पूछा। आनन्द ने सारा घटनावृत्त जाना और भगवान् को निवेदित किया। भगवान् ने उसी समय भिक्षु-संघ को एकत्रित किया और सब के बीच पिण्डोल भारद्वाज से पूछा--"क्यों, तू ने सचमुच राजगृह श्रेष्ठी का पात्र उतारा?" "हाँ, भगवन् !" बुद्ध ने उन्हें धिक्कारते हुए कहा-"भारद्वाज ! यह अनुचित है, प्रतिकूल है, श्रमण के अयोग्य है और अकरणीय है । एक नगण्य से काष्ठ-पात्र के लिए गृहस्थों को उत्तर मनुष्य ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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