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इतिहास और परम्परा
त्रिपिटिकों में निगष्ठ व निगण्ठ नातपुत्त
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क्षेत्र की अपेक्षा लोक-सान्त काल की अपेक्षा लोक-अनन्त भाव की अपेक्षा लोक--अनन्त ।'
दो लोकायतिकों की लोक-चर्चा क्षेत्रिक अपेक्षा से ही प्रतीत होती है; अतः खेत्तओ लोए सअंते यह आगम-पाठ अंगुत्तर निकाय के दूसरे पाठान्तर की पुष्टि कर देता है।
____ इस प्रश्न को बुद्ध ने बिना अपना मन्तव्य व्यक्त किये ही टाला है। वस्तुस्थिति यह है कि बुद्ध ने इसे तथा इस प्रकार के अनेकों प्रश्नों की मज्झिम निकाय आदि में 'अव्याकृत' कहा है। वे प्रश्न हैं
१. क्या लोक शाश्वत है ? २. क्या लोक अशाश्वत है ? ३. क्या लोक अन्तमान है ? ४. क्या लोक अनन्त है ? ५. क्या जीव और शरीर एक हैं ? ६. क्या जीव और शरीर भिन्न हैं ? ७. क्या मरने के बाद तथागत नहीं होते ? ८. क्या मरने के बाद तथागत होते भी हैं और नहीं भी होते ? ६. क्या मरने के बाद तथागत न होते हैं और न नहीं होते हैं ?
१२. वप्प जैन-श्रावक
एक समय भगवान् शाक्य जनपद में कपिलवस्तु के न्यग्रोधाराम में विहार करते थे। उस समय निगण्ठ नातपुत्त का श्रावक वप्प जहाँ आयुष्मान् महामौद्गल्यायन थे, वहाँ गया।
१. एवं खलु मए खंदया ! चउविहे लोए पन्नते, तं जहा-दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ दव्वओ णं एगे लोए सअंते ?
खेत्तओ णं लोए असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयामविक्खं भेणं असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं पन्नत्ता, अत्थि पुण सते 2।
कालओ णं लोए न कयाविन आसी, न कयावि न भवति, न कयावि न भविस्सति, भविंसु य भवति य भविस्सइ य, धुवे णितिए सासते अक्खए अव्वए अवट्टिए णिच्चे, णत्थि पुण से अन्ते ३ ।
भावओ णं लोए अणता वण्णपज्जवा गंधपज्जवा रसपज्जवा फासपज्जवा अणंता संठाणपज्जवा अणंता गरुयलहुयपज्जवा अणंता अगरुयलहुयपज्जवा, नत्थि पुण से अन्ते ।।
से तं खंदगा ! दव्वओ लोए सअंते, खेत्तओ लोए सते, कालतो लोए अणंते, भावमओ लोए अणंते।"
-भगवती सूत्र, २-१-६० । २. (क) मज्झिम निकाय, चूलमालूक्य सुत्त, ६३ ।
(ख) दीघ निकाय, पोट्टपाद सुत्त ११९ ।
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