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________________ इतिहास और परम्परा] त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त ३८१ ६. जिसका प्रश्न छः का हो, जिसका उत्तर भी छः का हो, ७. जिसका प्रश्न सात का हो, जिसका उत्तर भी सात का हो, ८. जिसका प्रश्न आठ का हो, जिसका उत्तर भी आठ का हो, ६. जिसका प्रश्न नौ का हो, जिसका उत्तर भी नौ का हो; और १०. जिसका प्रश्न दस का हो, जिसका उत्तर भी दस का हो।" गृहपति चित्र ने निगंठ नातपुत्र के समक्ष प्रश्न उपस्थित किया और उठकर चला गया। -संयुत्त निकाय, निगंठ सुत्त, ३६-८ के आधार से समीक्षा अवितर्क-अविचार समाधि का उल्लेख शुक्ल ध्यान के द्वितीय चरण के रूप में जैन दर्शन में भी आता है। चित्र गृहपति मच्छिकासण्ड ग्राम का निवासी व कोषाध्यक्ष था। धर्म-कथा में वह बहुत कुशल था। इसने महक, कामभू, गोदत्त, अचेल काश्यप आदि अनेक लोगों से चर्चा की थी। बुद्ध ने उसे धर्म-कथिकों में अग्रगण्य कहा। ६. कुतूहलशाला सुत्त ___ वत्स गोत्र परिव्राजक भगवान् बुद्ध के पास आया और कुशल-क्षेम पूछ कर एक ओर बैठ गया। भगवान् से बोला-“गौतम ! बहुत समय पूर्व की बात है। एक दिन कुतूहलशाला में एकत्रित विभिन्न मतावलम्बी श्रमण, ब्राह्मण और परिव्राजकों के बीच चर्चा चली—'पूरण काश्यप संघी, गणी, गणाचार्य, प्रसिद्ध, यशस्वी, तीर्थंकर और बहुजन-सम्मानित हैं। वे अपने मृत श्रावकों के बारे में सही-सही बता देते हैं कि अमुक वहाँ उत्पन्न हुआ है और अमुक वहाँ । उनका जो उत्तम पुरुष, परम पुरुष, परम-प्राप्ति-प्राप्त श्रावक है, वह भी मत श्रावकों के बारे में सही-सही बता देता है कि अमुक यहाँ उत्पन्न हुआ है और अमुक यहाँ।' मक्खलि गोशाल, निगंठ नातपुत्त, संजय वेलठ्ठिपुत्र, प्रक्रुध कात्यायन और अजित केशकम्बल भी संघी, गणी, गणाचार्य, प्रसिद्ध, यशस्वी, तीर्थङ्कर और बहुजन-सम्मानित हैं। वे सभी मृत श्रावकों के बारे में इस प्रश्न का सही-सही उत्तर देते हैं। उनका परम-प्राप्तिप्राप्त श्रावक भी इस प्रश्न का सही उत्तर दे सकता है। मन्ते ! आपके बारे में भी वहाँ चर्चा चली-'श्रमण गौतम भी संघी, गणी, बहुजन-सम्मानित हैं और मृत श्रावकों के बारे में सही-सही उत्तर देते हैं। उनके परम-प्राप्ति-प्राप्त श्रावक भी इस प्रश्न को सहज ही समाहित कर देते हैं। इसके साथ बुद्ध यह भी बता देते हैं—'अमुक ने तृष्णा का उच्छेद कर डाला है, १. जैन सिद्धान्त दीपिका, १३४ । २. Dictionary of Pali proper Names, vol. I, p. 865. ३. संयुत्त निकाय, शलायतनवग्ग, चित्तसंयुत्त।। ४. अंगुत्तर निकाय, एतदग्गवग्ग सुत्त, देखें, प्रमुख 'उपासक-उपासिकाएं' प्रकरण। ५. वह गृह, जहाँ नाना मतावलम्बी एकत्र होकर धर्म-चर्चा करते हैं और जिसे सभी उपस्थित मनुष्य कुतूहलपूर्वक सुनते हैं। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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