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________________ इतिहास और परम्परा ] त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगष्ठ नातपुत्त ३६६ किया था। उनका कहना था, इस प्रकार पूछने पर श्रमण गौतम न उगल सकेगा और न निगल सकेगा । " अभय राजकुमार की गोद में उस समय एक बहुत ही छोटा व सुस्त शिशु बैठा था । उसे लक्षित कर बुद्ध ने कहा - "राजकुमार ! तेरे या धाय के प्रमोद से यह शिशु मुख में काठ या ढेला डाल ले तो तू इसका क्या करेगा ?" राजकुमार ने उत्तर दिया- “भन्ते ! मैं उसे निकाल लूंगा । यदि मैं उसे सीधे ही न निकाल सका तो बांये हाथ से सिर पकड़ कर, दाहिने हाथ से अंगुली टेढ़ी कर खून सहित भी निकाल लूंगा; क्योंकि कुमार पर मेरी दया है ।" बुद्ध ने कहा - "राजकुमार ! तथागत अतथ्य, अनर्थ-युक्त और अप्रिय वचन नहीं बोलते । तथ्य सहित होने पर भी यदि अनर्थक और अप्रिय होता है तो तथागत वैसा वचन नहीं बोलते। दूसरों को प्रिय होने पर भी जो वचन अतथ्य व अनर्थक होता है, तथागत उसे भी नहीं बोलते । जिस वचन को तथ्य व सार्थक समझते हैं, वह फिर प्रिय या अप्रिय भी क्यों न हो; कालज्ञ तथागत बोलते हैं; क्योंकि उनकी प्राणियों पर दया है ।" अभय राजकुमार ने कहा - "भन्ते ! क्षत्रिय- पण्डित, ब्राह्मण पण्डित, गृहपतिपण्डित, श्रमण- पण्डित प्रश्न तैयार कर तथागत के पास आते हैं मोर पूछते हैं। क्या आप पहले से ही मन में सोचे रहते हैं, जो मुझे ऐसा पूछेगा, मैं उन्हें ऐसा उत्तर दूँगा ।" बुद्ध ने कहा - "राजकुमार ! मैं तुझे ही एक प्रश्न पूछना चाहता हूं, जैसा जचे, वैसा उत्तर देना। क्या तू रथ के अंग-प्रत्यंग में चतुर है ?" "हाँ मन्ते ! मैं रथ के अंग-प्रत्यंग में चतुर हूँ ।" "राजकुमार ! रथ की ओर संकेत कर यदि तुझे कोई पूछे, रथ का यह कौन-सा अंग-प्रत्यंग है ? तो क्या तू पहले से ही सोचे रहता है, ऐसा पूछा जाने पर मैं ऐसा उत्तर दूंगा या अवसर पर ही यह तुझे मासित होता है ?" "भन्ते ! मैं रथिक हूँ । रथ के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग का मैं प्रसिद्ध ज्ञाता हूँ; अतः मुझे उसी क्षण मासित हो जाता है।" "राजकुमार ! इसी प्रकार तथागत को भी उसी क्षण उत्तर भासित हो जाता है; क्योंकि उनकी धर्म - धातु (मन का विषय ) अच्छी तरह सध गई है ।" अभय राजकुमार बोला – “आश्चर्य भन्ते ! अद्भुत मन्ते ! आपने अनेक प्रकार (पर्याय) से धर्म को प्रकाशित किया है। मैं भगवान् की शरण जाता हूँ, धर्म व भिक्षु संघ की मी । आज से मुझे अंजलिबद्ध शरणागत उपासक स्वीकार करें ।" - मज्झिमनिकाय, अभय राजकुमार सुत्तन्त, २-१-८ के आधार से समीक्षा अभय राजकुमार का समीक्षात्मक वर्णन किया जा चुका है।' १. देखें, 'अनुयायी राजा' प्रकरण के अन्तर्गत 'अभयकुमार' । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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