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मागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन को शीतजल का परित्यागी व उष्ण जलसेवी बताया है; जो जन-साधुनों की क्रिया से सुसंगत ही है।
३. अभय राजकुमार
एक समय भगवान् राजगृह के वेणु-वन कलन्दक निवाप में विहार करते थे। अभय राजकुमार निगंठ नातपुत्त के पास गया। निगंठ नातपुत्त ने उससे कहा--"राजकुमार ! श्रमण गौतम के साथ शास्त्रार्थ कर, इससे तेरा सुयश फैलेगा। जनता में चर्चा होगी, 'अभय राजकुमार ने इतने महद्धिक श्रमण गौतम के साथ शास्त्रार्थ किया है।"
अभय राजकुमार ने निगंठ नातपुत्त से पूछा-"भन्ते ! मैं शास्त्रार्थ का आरम्भ कैसे
निगंठ नातपुत्त ने उत्तर दिया-"तुम गौतम बुद्ध से पूछना, 'क्या तथागत ऐसा वचन बोल सकते हैं, जो दूसरों को अप्रिय हो।' यदि श्रमण गौतम स्वीकृति में उत्तर दे तो पूछना, 'फिर पृथग जन (अज्ञ संसारी जीव) से तथागत का क्या अन्तर हुआ? ऐसे वचन तो पृथग् जन भी बोल सकता है ।' यदि श्रमण गौतम नकारात्मक उत्तर दे तो पूछना, 'आपने देवदत्त के लिए यह भविष्यवाणी क्यों की, वह दुर्गतिगामी, नैरयिक, कल्प भर नरकवासी और अचिकित्स्य है । आपके इस कथन से वह कुपित (असन्तुष्ट) हुआ है। इस प्रकार दोनों ओर के प्रश्न पूछने पर श्रमण गौतम न उगल सकेगा, न निगल सकेगा। किसी पुरुष के गले में यदि लोहे की बंसी फंस जाती है तो वह न उगल सकता है, न निगल सकता है। ऐसी ही स्थिति बुद्ध की होगी।"
निगंठ नातपुत्त को अभिवादन कर अभय राजकुमार वहाँ से उठा और बुद्ध के पास गया। अभिवादन कर एक ओर बैठ गया। अभय राजकुमार ने समय देख कर सोचा'भगवान् के साथ शास्त्रार्थ करने का आज समय नहीं है। कल अपने घर पर ही शास्त्रार्थ करूँगा।" राजकुमार ने उस समय चार आदमियों के साथ बुद्ध को दूसरे दिन के भोजन का निमंत्रण दिया। बुद्ध ने मौन रह कर उसे स्वीकार किया । अभय राजकुमार अपने राजप्रासाद में चला आया।
दूसरे दिन पूर्वाह्न के समय चीवर पहिन कर, पात्र व चीवर लेकर बुद्ध अभय राज. कुमार के घर आये। बिछे आसन पर बैठे। अभय राजकुमार ने बुद्ध को उत्तम खाद्य-मोज्य से अपने हाथ से तृप्त किया। बुद्ध के भोजन कर चुकने पर, पात्र से हाथ हटा लेने पर अभय राजकुमार एक नीचा आसन लेकर एक ओर बैठ गया और शास्त्रार्थ आरम्भ किया। बोला-"भन्ते ! क्या तथागत ऐसा वचन बोल सकते हैं, जो दूसरों को अप्रिय हो ?"
बुद्ध ने उत्तर दिया-"राजकुमार ! यह एकान्तिक रूप से नहीं कहा जा सकता।" उत्तर सुनते ही अभय राजकुमार बोल पड़ा-“मन्ते ! निगंठ नष्ट हो गये।" बुद्ध ने साश्चर्य पूछा-"राजकुमार ! क्या तू ऐसे बोल रहा है-'भन्ते ! निगंठ नष्ट
हो गए'
अभय राजकुमार ने दृढ़ता के साथ कहा-"हाँ, भन्ते ! बात ऐसी ही है। मैं निगंठ नातपुत्त के पास गया था। मुझे आपसे यह दुबारा प्रश्न पूछने के लिए उन्होंने ही प्रेरित
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