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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १
निगंठ नातपुत्त ने उपालि से कहा- "गृहपति ! तू उन्मत्त हो गया है ? जड़ हो गया है ? तू ने मुझे कहा था, 'मैं बुद्ध के पास शास्त्रार्थ करूँगा, उसे परास्त करूँगा और स्वयं बड़े भारी वाद के संघाट (जाल) में फंस कर लौटा है । अण्डकोश-हारक जैसे निकाले हुए अण्डों के साथ और अक्षि-हारक जैसे निकाली हुई अक्षि के साथ लौटता है, वैसे ही गृहपति ! तू श्रमण गौतम के साथ शास्त्रार्थ करने गया था और तू ही स्वयं उसके वाद-संघाट (जाल) में फंस कर लौटा है। श्रमण गौतम ने आवर्तनी माया से तेरी बुद्धि में विभ्रम पैदा कर दिया है।
गृहपति ने उत्तर दिया-'भन्ते ! यह आवर्तनी माया सुन्दर है, कल्याणी है, मेरे प्रिय जाति भाई भी यदि इस आवर्तनी माया द्वारा फेर लिए जायें, तो यह उनके चिरकाल तक हित-सुख के लिए होगा। यदि सभी क्षत्रिय, सभी ब्राह्मण, सभी वैश्य, सभी शूद्र, देव-मारब्रह्मा सहित सारा लोक, श्रमण-ब्राह्मण-देव मनुष्य सारी प्रजा इस आवर्तनी माया के द्वारा फेर ली जाये, तो यह चिरकाल तक उनके हित-सुख के लिए होगा।"
गृहपति उपालि ने कहा-"भन्ते ! मैं अपने अभिमत को एक उपमा द्वारा और स्पष्ट करना चाहता हूँ। पूर्व काल में किसी जीर्ण महल्लक ब्राह्मण की एक नव वयस्का माणविका पत्नी आसन्न-प्रसवा हुई। उसने ब्राह्मण को कहा-'बाजार से बन्दर के बच्चे का एक खिलौना लाओ। वह मेरे कुमार का खिलौना होगा।' ब्राह्मण ने उत्तर दिया-'कुमार का जन्म होते ही मैं खिलौना ला दूंगा। आप इतनी शीघ्रता क्यों करती हैं ?' किन्तु माणविका ने उसकी एक नहीं सुनी। उसने हठ-पूर्वक अपनी बात को दो-तीन बार दुहराया। ब्राह्मण उसमें अनुरक्त-चित्त था; अत: वह बाजार से मर्कट-शावक का खिलौना ले आया और उसे सौंप दिया। माणविका ने कहा-'आप इसे लेकर रजक-पुत्र के पास जायें और उसे आप पीले रंग से रंगने, मलने व चमक युक्त करने के लिए निर्देश दें।' ब्राह्मण ने वैसा ही किया, किन्तु, रजक-पुत्र ने उसे लौटाते हुए कहा-'यह खिलौना न रंगने के योग्य है, न मलने के योग्य है और न चमक करने योग्य ही।' इसी प्रकार भन्ते ! बाल (नक्त) निगंठों का सिद्धान्त बालों के रंजन के लिए ही है; पण्डितों के लिए नहीं। यह तो न परीक्षा (अनुयोम) के योग्य है और न मीमांसा के योग्य ।
__ "वही ब्राह्मण एक धुस्सा लेकर रजक-पुत्र के पास गया। उसने उसे रंगने, मलने और चमक-युक्त करने के लिए दिया। रजक-पुत्र ने उसे ले लिया और कहा- "यह तुम्हारा धुस्सा अवश्य रंगने, मलने व चमक करने के भी उपयुक्त है। इसीलिए भन्ते ! उन भगवान् अर्हत् सम्यक् सम्बुद्ध का वाद (सिद्धान्त) पण्डितों के रंजन के योग्य हैं ; बालों के लिए नहीं। वह परीक्षा और मीमांसा के योग्य भी है।"
निगंठ नातपुत्त ने कहा- "गृहपति ! राजा और सारी जनता जानती है कि उपालि गृहपति निगंठ नातपुत्त का श्रावक है। अब तुझे किसका श्रावक समझना चाहिए ?"
गृहपति तत्काल आसन से उठा। उसने उत्तरासंग को एक कन्धे पर किया। जिस दिशा में भगवान् गौतम थे, उस ओर बद्धाञ्जलि होकर निगंठ नातपुत्त मे बोला-'मैं उन भगवान् का श्रावक हूँ, जो विगतमोह, निर्दुःख, विश्व के तारक, अनुत्तर, क्षेमकर, ज्ञानी, मुक्त, दान्त, आर्य, भावितात्मा, स्मृतिमान्, महाप्राज्ञ, तथागत, सुगत, महान्, उत्तम यशप्राप्त हैं।"
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