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इतिहास और परम्परा ]
त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त
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अपने पक्ष के समर्थन में श्रमण गौतम ने आगे कहा- "गृहपति ! चातुर्याम' संवर से संवृत्त, सर्व वारि के निवारण में तत्पर एक निर्ग्रन्थ गमनागमन में बहुत सारे छोटे-छोटे प्राणि समुदाय को मारता है । निगंठ नातपुत्त इसका क्या फल बतलाते हैं ?'
"
"
"भन्ते ! निगंठ नातपुत्त अज्ञात को महादोषी नहीं कहते ।' "यदि ज्ञात हो तो ?"
“भन्ते ! तब महादोष होगा ।"
"निगंठ नातपुत्त ज्ञान की गणना किस दण्ड में करते हैं ?"
"भन्ते ! मन दण्ड में ।"
"गृहपति ! थोड़ा चिन्तन कर । तेरे पूर्व पक्ष से यह पक्ष और इस पक्ष से पूर्व पक्ष बाधित होता है ।"
एक अन्य युक्ति प्रस्तुत करते हुए गौतम बुद्ध ने कहा- " गृहपति ! एक पुरुष नंमी तलवार लेकर आये और कहे- 'नालन्दा के सभी नागरिकों को एक ही क्षण व एक ही मुहूर्त में मैं प्रेत्य-धाम पहुँचाऊँगा और खलियान में उनके मांस का एक ढेर बनाऊँगा ।" गृहपति ! क्या वह व्यक्ति ऐसा कर सकता है ?"
"भन्ते ! दस-बीस, चालीस-पचास व्यक्ति भी ऐसा नहीं कर सकते, वह एक पामर व्यक्ति क्या कर सकेगा ?"
"गृहपति ! एक बुद्धिमान् श्रमण या ब्राह्मण आये, जिसने अपने चित्त को वश में किया है, और कहे - " मैं इस नालन्दा को मानसिक क्रोध से भस्म कर दूंगा, तो क्या वह ऐसा कर सकता है ?"
" भन्ते ! एक नालन्दा ही क्या ; इस प्रकार के पचासों नगरों को वह भस्म कर सकता है ।"
गृहपति ! थोड़ा चिन्तन कर क्या तेरा यह कथन पूर्व पक्ष से मेल खाता है ?" गौतम बुद्ध ने अपने पक्ष के समर्थन में एक अन्य उपमा प्रस्तुत करते हुए उपालि से पूछा - "गृहपति ! तू ने दण्डकारण्य, कलिंगारण्य, मेध्यारण्य, मातंगारण्य की घटनाएँ सुनी हैं ? वे अरण्य किस प्रकार हुए ?"
"भन्ते ! ऋषियों के मानसिक कोप के श्राप से ।"
गृहपति ! तेरे ही कथन से तेरा पक्ष बाधित होता है और मेरा पक्ष प्रमाणित । तूने महले कहा था- सत्य में स्थिर होकर मंत्रणा करूंगा । तू अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण कर ।" "भन्ते ! भगवान् की प्रथम उपमा से ही मैं सन्तुष्ट और अभिरत हो गया था । पटिभान (विचित्र प्रश्नों के व्याख्यान) को और अधिक सुनने के अभिप्राय से मैंने आपको प्रतिवादी बनाया था । आश्चर्य भन्ते ! आश्चर्य भन्ते ! जैसे उलटे को सीधा कर दे, आवृत्त
१. (क) प्राणियों की हिंसा न करना, न करवाना और न अनुमोदन करना; (ख) चोरी न करना, (ग) झूठ न बोलना, (घ) भावित ( कामभोग) न चाहना । २. सचित्त शीतल जल या पाप रूपी जल ।
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