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आगम और त्रिपिटकों में निगण्ठ नातपुत्त
[खण्ड : १ दीर्घ तपस्वी निम्रन्थ के समक्ष जिस प्रकार अपने पक्ष का समर्थन किया, वैसे ही यदि यह मेरे सामने करेगा, तो जैसे कोई बलिष्ठ पुरुष भेड़ के लम्बे-लम्बे केशों को पकड़ कर उसे निकालता है, घुमाता है, फफेड़ता है; उसी प्रकार मैं उसके वाद को निकालूंगा, घुमाऊँगा और फफेडूंगा। भन्ते ! जैसे कोई शौण्डिक कर्मकर शौण्डिका-किलंज को तालाब में फेंक कर उसके कानों को पकड़ कर निकालता है, घुमाता है, डुलाता है ; उसी प्रकार मैं श्रमण गौत्तम के वाद (सिद्धान्त) को निकालूंगा, घुमाऊँगा और डुलाऊँगा । साठ वर्षीय पुष्ट हाथी गहरी पुष्करिणी में घुस कुर जैसे सन-धोवन खेल खेलता है, वैसे ही मैं श्रमण गौतम को सन-धोवन खेल खिलाऊँगा । आप मुझे अनुज्ञा दें । मैं जाता हूँ और शास्त्रार्थ करता हूँ।"
निमंठ नातपुत्त ने उपालि को सहर्ष अनुज्ञा दी और शास्त्रार्थ की प्रेरणा दी। साथ ही उन्होंने एक प्रश्न भी उपस्थित कर दिया - "गृहपति ! गौतम के साथ मैं शास्त्रार्थ करूँ, दीर्व तपस्वी निर्ग्रन्थ करे या तू करेगा?"
दीर्घ तपस्वी निम्रन्थ ने प्रस्ताव रखा- "भन्ते ! गृहपति उपालि का श्रमण गौतमके पास जाना और शास्त्रार्थ करना उचित नहीं है। वह मायावी है। आवर्तनी माया के माध्यम से वह मति-भ्रम कर देता है और दूसरे तैथिकों के श्रावकों को अपने प्रभाव में ले लेता है।"
निगंठ नातपुत्त ने उस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा-"तपस्विन् ! यह संभव नहीं है कि- गृहपति उपालि श्रमण गौतम का श्रावक हो जाए । मुझे तो यही संभव लगता है कि श्रमण गौतम ही गृहपति उपालि का श्रावक हो जाए।" गृहपति उपालि की ओर अभिमुख होकर उन्होंने निर्देश दिया- गृहपति ! जाओ और श्रमण गौतम के साथ शास्त्रार्थ करो।"
उपालि ने उस निर्देश को सहर्ष शिरोधार्य किया और निगंठ नातपुत्त को अभिवादन व प्रदक्षिणा कर प्रावारिक आम्र-वन में भगवान् बुद्ध के पास आया। अभिवादन कर एक
ओर बैठ गया। उपालि द्वारा पूछे जाने पर बुद्ध ने दीर्घ तपस्वी निम्रन्थ के साथ हुए सारे कथा-संलाप-को सविस्तार सुनाया। उपालि ने कहा-"यह ठीक ही है । यह निर्जीव मनदण्ड महान् काय-दण्ड के समक्ष नगण्य है। पाप-कर्म की प्रवृत्ति के लिए काय-दण्ड ही महादोषी है।"
गृहपति ! यदि तू सत्य में स्थिर होकर मंत्रणा करे तो हम दोनों का संलाप हो।" "भन्ते ! मैं सत्य में स्थिर हूँ। आप आरम्भ करें।"
“गृहपति ! भयंकर रोग से ग्रस्त, शीतल जल का परित्यागी व ऊष्ण जल का सेवी एक निमंठ पानी के अभाव से काल-कवलित हो जाता है, तो निगंठ नातपुत्त उसकी पुनः उत्पत्ति कहां बतलायेंगे ?'
"मन्ते ! वह निगंठ मनः-सत्त्व देवालय में उत्पन्न होगा; क्योंकि वह मन से बंधा मृत्यु प्राप्त हुआ है।" - "गृहपति ! थोड़ा चिन्तन कर। तेरे पूर्व पक्ष से यह पक्ष और इस पक्ष से पूर्व पक्ष बाधित होता है।"
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