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इतिहास और परम्परा] त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त
३५७ किया-"पूछू या न पूछ ? निगंठ नातपुत्त मेरा क्या करगे ? क्यों न मैं उन्हें बिना पूछे ही उन भगवान् के दर्शनार्थ जाऊँ ?"
दोपहर को सिंह सेनापति पाँच सौ रथों के साथ बुद्ध के दर्शनार्थ वैशाली से चला। जहाँ तक रथ पहुँच सकते थे, वहाँ तक रथ से और बाद में पैदल ही आराम में प्रविष्ट हुआ। भगवान के पास गया और अभिवादन कर एक ओर बैठ गया। विनम्रता से निवेदन किया"भन्ते ! मैंने सुना है कि श्रमण गौतम अक्रियावादी है, अक्रिया के लिए ही धर्मोपदेश करता है और शिष्यों को उसी ओर ले जाता है । भन्ते ! जो ऐसा कहता है, क्या वह आपके बारे में ठीक कहता है ? मिथ्या ही भगवान् की निन्दा तो नहीं करता ? धर्मानुसार ही धर्म को कहता है ? इस प्रकार के वाद-विवाद से धर्म की निन्दा तो नहीं होती? भन्ते ! हम भगवान् की निन्दा करना नहीं चाहते।"
'सिंह ! इसका कारण है, जिससे मुझे ऐसा कहा जाता है।" 'भन्ते ! इसका क्या कारण है ?"
‘सिंह ! मैं काय-दुश्चरित , वचन-दुष्चरित, मन-दुश्चरित और तथाप्रकार की अनेक बराइयों को अक्रि या कहता हूँ तथा उनके निवारण के लिए जनता को उपदेश देता है। अतः मुझे लोग अक्रियावादी कहते हैं।"
सिंह ! 'मुझे बहुत सारे लोग क्रियावादी भी कहते हैं। वे कहते हैं, मैं क्रिया के लिए धर्मोपदेश करता है और उसी ओर श्रावकों को ले जाता हूँ। उसका भी कारण तूने खोजा होगा?"
"भन्ते ! मैं उस कारण को जानना चाहता हूँ।"
"सिंह ! मैं काय सुचरित, वाक् सुचरित, मन :--सुचरित और तथाप्रकार के अनेक धर्मों की क्रिया कहता हूँ; अत: मुझे लोग क्रिया वादी कहते हैं। इसी प्रकार मुझे उच्छेदवादी, जुगुप्सु, वैनयिक तपस्वी व अपगर्भ भी कहते हैं।"
"सिंह! मुभे अस्ससंत (आश्व संत) भी कहते हैं । उसका तात्पर्य है, मैं परम आश्वास से आश्वासित हूँ। आश्वास के लिए धर्मोपदेश करता हूँ और आश्वास के मार्ग से ही श्रावकों को ले जाता हूँ।"
सिंह सेनापति के मुख से सहसा उदान निकला- "आश्चर्य भन्ते ! आश्चर्य भन्ते ! मुभे आप उपासक स्वीकार करें।"
बुद्ध ने उत्तर दिया--"सिंह ! सोच-समझ कर कदम उठाओ। तुम्हारे जैसे सम्भ्रान्त व्यक्ति के लिए सोच-समझ कर ही निश्चय करना उचित है।"
सिंह सेनापति बोला-"मन्ते! भगवान् के इस कथन से मैं और भी सन्तुष्ट हुआ हूँ। दूसरे तैर्थिक तो मेरे जैसा शिष्य पाकर फूले नहीं समाते हैं । सारी वैशाली में पताका उड़ाते हैं-'सिंह सेनापति हमारा शिष्य (श्रावक) हो गया है। किन्तु भगवान् तो मुझे यह परामर्श देते हैं—सिंह ! सोच समझ कर ही ऐसा करो।' भन्ते ! मैं दूसरी बार भगवान् की शरण जाता हूँ, धर्म व भिक्षु-संध की शरण जाता हूँ।"
___ "सिंह ! तेरा घर दीर्घ काल से निगंठों के लिए प्याऊ की तरह रहा है। तेरे घर आने पर उन्हें पिण्ड न देना चाहिए, ऐसा मत समझना।"
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