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इतिहास और परम्परा] त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त महावीर के निर्वाण-संवाद को लेकर पहुंचने वाले भिक्षु चुन्द समणुद्देश को बुद्ध के पास ले जाते हुए आनन्द कहते हैं : अस्थि खो, इवं, 'आवुसो चुन्द, कथापाभतं भगवन्तं दस्सनाय' अर्थात् आवुस चुन्द ! भगवान् के दर्शन में यह संवाद कथा-प्रामृत (उपहार) होगा। सामान्यतः यह लगता ही है कि महावीर का निधन-संवाद पाकर आनन्द को कितना हर्ष हुआ है और उसने उसे उपहार रूप माना है। मैंने अपने एक प्राक्तन निबन्ध में उसकी तथारूप आलोचना भी की है।' पर, सारिपुत्र के मृत्यु-संवाद को लेकर भी वही चुन्द आनन्द के पास आता है, वहां पर भी आनन्द कहते हैं : 'अत्थि खो, आवुस चुन्द कथापाभतं भगवन्तं दस्सनाय' ।२ इससे प्रमाणित होता है कि यह बौद्ध-परम्परा की या उस युग की उक्ति-मात्र है। इससे कुत्सा अभिव्यक्त नहीं होती।
पालि वाङ्मय में प्रायः सभी समुल्लेख निगण्ठ नातपुत्त व निगण्ठ-धर्म के प्रति आक्षे. पात्मक हैं। इसका तात्पर्य यह नहीं कि वे बौद्धों और निगण्ठों के अधिकतम मतभेद की सूचना देते हैं। बहुधा होता यह है, जो सम्प्रदाय जिस सम्प्रदाय से जितना निकट है, उतना ही अधिक उसका आलोचक होता है। दूर के भेद क्षम्य होते हैं, निकट के अक्षम्य । यही उक्त मनोवृत्ति का कारण हो सकता है। आज के सम्प्रदायों में भी यही स्थिति है। जैन सम्प्रदाय जितने परस्पर एक-दूसरे के आलोचक हैं, उतने बौद्ध या वैदिक धर्मों के नहीं।
प्रसंगों की समप्रता
प्रस्तुत प्रकरण में त्रिपिटक-साहित्य के वे समुल्लेख संगृहीत किये गये हैं, जिनमें किसी-न-किसी रूप में महावीर का सम्बन्ध आता है। साथ-साथ वे समुल्लेख भी ले लिये गये हैं, जो निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय के सम्बन्ध से हैं। अनेक समुल्लेख पिछले प्रकरणों में प्रसंगोपात्त उद्धत हुए हैं, पर, समग्रता की दृष्टि से उन्हें इस प्रकरण में भी पुनः ले लिया गया है। डॉ० हर्मन जेकोबी ने 'जैन सूत्रों की भूमिका में त्रिपिटकों में आये महावीर व निर्ग्रन्थों सम्बन्धी समुल्लेखों का समीक्षात्मक संकलन प्रस्तुत किया है । वे समुल्लेख ११ हैं। डॉ० जेकोबी की धारणा में तब तक की प्रकाशित सामग्री का वह समग्र संकलन है। प्रस्तुत प्रकरण में वे समुल्लेख ११ की अपेक्षा ५१ हो गये हैं। इन नवीन प्रसंगों में से कुछ उन ग्रन्थों के हो सकते हैं, जो उस समय तक प्रकाशित न हुए हों, पर, कुछ समुल्लेख ऐसे भी हैं जो डॉ. जेकोबी की निगाह से बच रहे थे ; क्योंकि एक ही ग्रन्थ के कुछ समुल्लेख डॉ. जेकोबी के संकलन में भाये हैं और कुछ नहीं। डा० मलशेकर ने भी 'निगण्ठ नातपुत्त' शब्द पर जो संदर्भ आकलित किये हैं, वे भी परिपूर्ण नहीं हैं।
१. भिक्षु स्मृति ग्रन्थ, खण्ड २, पृ० ६ से १०, 'पालि वाङ्मय में भगवान् महावीर'
शीर्षक लेख, श्री जैन श्वेता० तेरापंथी महासभा, कलकत्ता, १९६० । २. संयुत्त निकाय, चुन्द सुत्त, ४५-२-३ । 3. S. B. E., vol. XIV, introduction, pp. XIV to XXIII. 8. Dictionary of Pali Proper Names vol., II. pp. 61-65.
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