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१७ त्रिपिटकों में निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त
आगमों में जहाँ बुद्ध के नामोल्लेख की भी अल्पता है, वहाँ त्रिपिटकों में महावीर सम्बन्धी घटना-प्रसंगों की बहुलता है। वहां उन्हें 'निगण्ठ नातपुत्त'' कहा गया है। निगण्ठ' शब्द सामान्यतः जैन भिक्षु का सूचक है। नातपुत्त शब्द भगवान महावीर के लिए आगमसाहित्य में भी प्रयुक्त है। वे घटना-प्रसंग कहाँ तक यथार्थ हैं, इस चिन्ता में यदि हम न जायें, तो निस्सन्देह कहा जा सकता है कि वे बहुत ही सरस, रोचक और प्रेरक हैं। दोनों धर्म-संघों के पारस्परिक सम्बन्धों, सिद्धान्तों व धारणाओं पर वे पूरा प्रकाश डालते हैं।
महावीर और बुद्ध का एक-दूसरे से कभी साक्षात् हुआ, ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता। एक समय में एक ही नगर के विभिन्न उद्यानों में वे रहे, ऐसे अनेक उल्लेख अवश्य मिलते हैं । गृहपति उपालि के चर्चा-प्रसंग व असिबन्धक पुत्र ग्रामणी के चर्चा-प्रसंग पर दोनों धर्मनायक नालंदा में थे। सिंह सेनापति के चर्चा-प्रसंग पर दोनों वैशाली में थे। अभयराजकुमार की चर्चा में दोनों के राजगृह में होने का उल्लेख है। महासकुलदायी सत्तन्त में तो सातों धर्मनायकों का एक ही वर्षावास राजगृह में होने का उल्लेख है । 'दिव्यशक्ति-प्रदर्शन' के घटनाप्रसंग पर सातों धर्मनायकों के एक साथ राजगृह में होने का उल्लेख है।
साम्प्रदायिक संकीर्णता (odium theologicum)
त्रिपिटकों में आये सभी समुल्लेख भाव-भाषा से बुद्ध की श्रेष्ठता और महावीर की न्यूनता व्यक्त करते हैं। जातक-अट्ठकथा और धम्मपद-अट्ठकथा के कुछ प्रसंग इस साम्प्रदायिक संकीर्णता (Odium theologicum) उत्कृष्ट उदाहरण हैं। एक प्रसंग ऐसा भी है, जो सामान्य अवलोकन में बहुत निम्न श्रेणी का लगता है, पर, मूलत: वह ऐसा नहीं है।
१. कहीं-कहीं निगण्ठ नाथपुत्त और निगण्ठ नाटपुत्त भी है। २. दसवेयालिय, सू०६।२० । ३. देखिये ; इसी प्रकरण में क्रमशः प्रसंग-संख्या २,६,१,३,१३, और १७ । ४. इस प्रकरण की प्रसंग-संख्या ३५,३६,३७ । ५. इस प्रकरण की प्रसंग-संख्या १८,१६,४१ ।
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