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१६ विहार और वर्षावास
दोनों युग-पुरुष विहार और वर्षावास की दृष्टि से बहुत ही अभिन्न रहे हैं। मगध, विदेह, काशी, कोशल, वत्स, अङ्ग, वज्जी, मल्ल आदि जनपद दोनों के प्रमुख विहार-क्षेत्र रहे हैं। राजगृह, मिथिला, वाराणसी, श्रावस्ती, कौशाम्बी, चम्पा, वैशाली, पावा-ये नगरियाँ क्रमश: इन जनपदों की राजधानियाँ थीं और ये महावीर और बुद्ध; दोनों के ही गमनागमन की केन्द्र रहीं हैं। अधिकांश राजधानियों में दोनों ने वर्षावास भी किये हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ की काल-गणना के अनुसार राजगृह में दो वर्षावास दोनों के एक साथ होते हैं।
___ महावीर ने कहां कितने वर्षावास किये, यह ब्योरा कप्पसुत्त' में मिलता है। वर्षावास के अतिरिक्त किन-किन ग्रामों में महावीर रहे, यह ब्यौरा आगम-ग्रन्थों में घटना-प्रसंगों के साथ प्रकीर्ण रूप से मिलता है । छद्मस्थ-अवस्था के द्वादश वर्षों का क्रमिक ब्योरा आवश्यक की नियुक्ति, चूणि, भाष्य और टीका में, कप्पसुत्त की टीका में तथा आचार्य नेमिचन्द्र, गुणचन्द्र तथा हेमचन्द्र द्वारा लिखे गए महावीर-चरित्रों में मिलता है। शेष वर्षावास और विहार का क्रमिक रूप क्या था, यह न कापसुत्त में ही मिलता है और न इतर साहित्य में। वर्तमान के कुछ विद्वानों ने महावीर के विहार और वर्षावासों को ऋमिक रूप देने का प्रयत्न किया है, जिनमें मुनि कल्याणविजयी व आचार्य विजयेन्द्र सूरि के नाम उल्लेखनीय हैं।
बुद्ध के विहार और वर्षावासों का क्रमिक विवरण मूल पिटक ग्रन्थों में नहीं मिलता। अंगुत्तर निकाय अट्ठकथा में बोधि-लाम के उत्तरवर्ती वर्षावासों का क्रमिक सन्धान किया गया है। ह्रीस डेविड्स, राहुल सांकृत्यायन, डा० भरतसिंह उपाध्याय" प्रभृति विद्वानों ने
१. सू० १२२ । २. श्रमण भगवान् महावीर । ३. तीर्थंकर महावीर (२ भाग)। ४.२-४-५। ५. Buddhism | ६. बुद्धचर्या । ७. बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, १९६१ ।
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