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इतिहास और परम्परा]
परिनिर्वाण
मल्लों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। तदनन्तर द्रोण ब्राह्मण ने अस्थियों के आठ विभाग कर सबको एक-एक भाग दिया । जिस कुम्भ में अस्थियाँ रखी थीं, वह अपने पास रखा। पिप्पलीवन के मौर्य आये । अस्थियां बंट चुकी थीं। वे चिता से अंगार (कोयला) ले गये। सभी ने अपने-अपने प्राप्त अवशेषों पर स्तूप बनवाये।
भगवान् की एक दाढ़ स्वर्गलोग में पूजित है और एक गन्धारपुर में। एक कलिंगराजा के देश में और एक को नागराज पूजते हैं। चालीस केश, रोम आदि को एक-एक करके नाना चक्रवालों में देवता ले गये।'
१. एका हि दाण तिदिवेहि पूजिता,
एका पन गन्धारपुरे महीयति । कालिङ्गरज्ञो विजिते पुनेकं, एकपन नागराजा महेति ॥... चतालीस समा दन्ता, केसा लोमा च सब्बसो। देवा हरिसं एकेक, चक्कवालपरम्परा ति ।।
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