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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
महाकाश्यप का आगमन
मल्लों ने उस समय चिता को प्रज्ज्वलित करना चाहा। पर, वे वैसा न कर सके। आयुष्मान् अनुरुद्ध ने इसका कारण बताया--"वाशिष्टो। तुम्हारा अभिप्राय कुछ और है तथा देवताओं का अभिप्राय कुछ और । देवता चाहते हैं, भगवान् की चिता तब जले, जब आयुष्मान् महा काश्यप भगवान् का चरण-स्पर्श कर लें।"
"कहाँ हैं भन्ते ! आयुष्मान् महाकाश्यप ?"
अनुरुद्ध ने उत्तर दिया-पांच सौ भिक्षुओं के साथ वे पावा और कुशीनारा के बीच रास्ते में आ रहे हैं।" मल्लों ने कहा-"भन्ते ! जैसा देवताओं का अभिप्राय है, वैसा ही
हो।"
आयुष्यान् महाकाश्यप मुकुट-बन्धन चैत्य में पहुंचे। उन्होंने चीवर को एक कन्धे पर कर, अंजलि जोड़, तीन बार चिता की परिक्रमा की। वस्त्र हटा कर अपने सिर से चरणस्पर्श किया। सार्धवर्ती पांच सौ भिक्षुओं ने भी वैसा ही किया। यह सब होते ही चिता स्वयं जल उठी । जैसे घी और तेल के जलने पर कुछ शेष नहीं रहता, वैसे ही भगवान् के शरीर में जो चर्म, मांस आदि थे, उनकी न राख बनी, न कोयला बना। केवल अस्थियाँ ही शेष रहीं। भगवान् के शरीर के दग्ध हो जाने पर आकाश में मेघ प्रादुर्भूत हुआ और उसने चिता को शान्त किया।
उस समय मल्लों ने भगवान् की अस्थियां अपने संस्थागार में स्थापित की। सुरक्षा के लिए शक्ति-पंजर' बनवाया। धनुष प्राकार बनवाया। अस्थियों के सम्मान में नृत्य, गीत आदि प्रारम्भ किये।
धातु-विभाजन
उस समय मगधराज अजातशत्रु ने दूत भेज कर मल्लों को कहलाया-"भगवान् क्षत्रिय थे; मैं भी क्षत्रिय हूँ। भगवान् की अस्थियों का एक भाग मुझे मिले । मैं स्तूप बनवाऊँगा और पूजा करूँगा।" इसी प्रकार वैशाली के लिच्छवियों ने, कपिलवस्तु के शाक्यों ने, अल्ल. कप्प के बुलियों ने, राम-गाम के कोलियों ने, बेठ-दीप के ब्राह्मणों ने तथा पावा के मल्लों ने भी अपने पृथक्-पृथक् अधिकार बतला कर अस्थियों की मांग की। कुशीनारा के मल्लों ने निर्णय किया-"भगवान् हमारे यहाँ परिनिर्वृत्त हुए हैं; अत: हम किसी को अस्थियों का भाग नहीं देंगे।"
द्रोण ब्राह्मण ने मल्लों से कहा—'यह निर्णय ठीक नहीं। भगवान् क्षमावादी थे, हमें भी क्षमा से काम लेना चाहिए । अस्थियों के लिए झगड़ा हो, यह ठीक नहीं । आठ स्थानों पर भगवान् की अस्थियाँ होंगी, तो आठ स्तूप होंगे और अधिक लोग बुद्ध के प्रति आस्थाशील बनेंगे।"
१. हाथ में माला लिए पुरुषों का घेरा। २. हाथ में धनुष लिए पुरुषों का घेरा।
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