SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इतिहास और परम्परा ] विहार और वर्षावास बुद्ध के समग्र वर्षावासों और विहारों का क्रमिक रूप प्रस्तुत किया है। अनुमान पर आधारित इस सन्धान में मतभेदों का होना तो स्वाभाविक है ही । कुल मिला कर अभाव को सद्भाव में परिणत करने का यह आयास उपयोगी ही है । इससे दोनों युग-पुरुषों के वर्षावासों और विहारों का मोटा खाका सर्व साधारण के सम्मुख आ ही जाता है । ३४७ आचार्य विजयेन्द्र सूरि और राहुल सांकृत्यायन द्वारा संयोजित दोनों युग-पुरुषों के विहार और वर्षावासों का क्रमिक ब्यौरा यहां दिया जा रहा है। वह तुलनात्मक अनुसन्धित्सा की दृष्टि से बहुत उपयोगी हो सकेगा, ऐसी आशा है । उक्त ब्योरे को प्रस्तुत ग्रन्थ की काल-गणना के साथ भी संगत कर दिया गया है । सुविधा और स्पष्टता के लिए प्रस्तुत तालिकाओं का एक प्रामाणिक तुलनात्मक विवरण मी बना दिया गया है, जो यहाँ अगले पृष्ठ में दिया जा रहा है : Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy