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इतिहास और परम्परा]
परिनिर्वाग तथागत के दर्शन के लिए एकत्रित हुए हैं। इस शाल-वन के चारों ओर बारह योजन तक बाल की नोंक गड़ाने-भर के लिए भी स्थान खाली नहीं है। देवता खिन्न हो रहे हैं कि यह पंखा झलने वाला भिक्षु हमारे अन्तराय भूत हो रहा है।" आनन्द ने कहा- "देवता आपको किस स्थिति में दिखलाई दे रहे हैं ?"
“आनन्द ! कुछ बाल खोलकर रो रहे हैं, कुछ हाथ पकड़ कर चिल्ला रहे हैं, कुछ कटे वृक्ष की भांति भूमि पर गिर रहे हैं। वे विलापात कर रहे हैं--'बहुत शीघ्र सुगत निर्वाण को प्राप्त हो रहे हैं, बहुत शीघ्र चक्षुष्मान् लोक से अन्तर्धान हो रहे हैं।"
आनन्द के प्रश्न
__ आनन्द ने पूछा--"भगवन् ! अब तक अनेक दिशाओं में वर्षावास कर भिक्ष आपके दर्शनार्थ आते थे। उनका सत्संग हमें मिलता था। भगवन् ! भविष्य में हम किसका सत्संग करेंगे, किसके दर्शन करेंगे?"
"आनन्द ! भविष्य में चार स्थान संवेजनीय (वैराग्यप्रद) होंगे : १. जहाँ तथागत उत्पन्न हुए (लुम्बिनी)। २. जहाँ तथागत ने सम्बोधि-लाभ किया (बोधिगया)। ३. जहाँ तथागत ने धर्म-चक्र का प्रवर्तन किया (सारनाथ) । ४. जहाँ तथागत ने निर्वाण प्राप्त किया (कुशीनारा)। "भन्ते ! स्त्रियों के साथ कैसा व्यवहार हो ?" ''अदर्शन।" ''दर्शन होने पर, भगवन् !" 'अनालाप।" "आलाप आवश्यक हो, वहाँ मन्ते !" "स्मृति को संभाल कर अर्थात् सजग होकर आलाप करें।" 'भन्ते ! तथागत के शरीर की अन्त्येष्टि कैसे होगी?" "जैसे चक्रवर्ती के शरीर की अन्त्येष्टि होती है।" "वह कैसे होती है, भगवन् !"
'आनन्द ! चक्रवर्ती के शरीर को नये वस्त्र से लपेटते हैं । फिर क्रमशः रुई में लपेटते हैं: नये वस्त्र से लपेटते हैं; तेल की लोह-द्रोणी में रखते हैं; सुगंधित काष्ठ की चिता बना कर चक्रवर्ती के शरीर को प्रज्वलित करते हैं । तदनन्तर चौराहे पर चक्रवर्ती का स्तूप बनाते हैं।"
आनन्द का रुदन
आयुष्यमान् आनन्द विहार में जाकर कपिशीर्ष (खूटी) को पकड़ कर रोने लगे--. "हाय मैं रोक्ष्य हूं। मेरे शास्ता का परिनिर्वाण हो रहा है।" भगवान् ने भिक्षुओं से पूछा"आनन्द कहाँ है ?"
"भगवन् ! वे विहार के कक्ष में रो रहे हैं।" "उसे यहां लायो।"
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