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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड :१
"नहीं, आवुस !" "क्या आप सोये थे ?" "नहीं, मावुस !" "आप सचेतन थे ?" "हाँ, आवुस !" "पुक्कुस ! तब उस आदमी को हुआ-"आश्चर्य है, अद्भुत है, यह शान्त विहार !"
पुक्कुस मल्ल-पुत्र यह बात सुन कर बहुत प्रभावित हुआ और बोला-"भन्ते ! यह बात तो पांच सौ गाड़ियां, हजार गाड़ियाँ और पांच हजार गाड़ियां निकल जाने से भी बड़ी है। आलार-कालाम में मेरी जो श्रद्धा थी, उसे आज मैं हवा में उड़ा देता हूँ, शीघ्र धार वाली नदी में बहा देता हूँ। आज से मुझे शरणागत उपासक धारण करें।" तब पुक्कुस ने चाकचिक्य पूर्ण दो सुनहरे शाल भगवान् को भेंट किए; एक भगवान् के लिए और एक आनन्द के लिए।
पुक्कुस मल्ल-पुत्र चला गया। आनन्द ने अपना शाल भी भगवान् को ओढ़ा दिया। भगवान् के शरीर से ज्योति उद्भूत हुई । शालों का चाकचिक्य मन्द हो गया। आनन्द के पूछने पर भगवान् ने कहा- "तथागत की ऐसी वर्ण-शुद्धि बोधि-लाभ और निर्वाण; इन दो अवसरों पर होती है। आज रात के अन्तिम प्रहर में कुशीनारा के मल्लों के शाल-बन में शाल वृक्षों के बीच तथागत का परिनिर्वाण होगा।"
ककुत्था नदी पर
भगवान् भिक्ष-संघ सहित ककुत्था नदी पर आये। स्नान किया। नदी को पार कर तटवर्ती आम्रवन में पहुंचे। विश्राम करते भगवान् ने कहा- "आनन्द ! चुन्द कर्मारपुत्र को कोई कहे-'आवुस चुन्द ! अलाभ है तुझे, दुर्लाभ है तुझे; तथागत तेरे पिण्डपात को खाकर परिनिर्वाण को प्राप्त हुए'; तो तू चुन्द के इस अपवाद को दूर करना । उसे कहना-"आवुस चुन्द ! लाभ है तुझे, सुलाभ है तुझे, तथागत तेरे पिण्डपात को खाकर परिनिर्वाण को प्राप्त हुए' और उसे बताना--'दो पिण्डपात समान फल वाले होते हैं; जिस पिण्डपात को खाकर तथागत अनुत्तर सम्यक् सम्बोधि प्राप्त करते हैं तथा जिस पिण्डपात को खाकर तथागत निर्वाण-धर्म को प्राप्त करते हैं।"
कुशीनारा में
__ककुत्था के आम्र-वन से विहार कर भगवान् कुशीनारा की ओर चले। हिरण्यवती नदी को पार कर कुशीनारा में जहाँ मल्लों का 'उपवत्तन' शाल-वन है, वहाँ आये । जुड़वें शाल-वृक्षों के बीच भगवान् मंचक (चारपाई) पर लेटे । उनका सिरहाना उत्तर की ओर था।
उस समय आयुष्यमान् उपवान भगवान् पर पंखा हिलाते भगवान् के सामने खड़े थे। भगवान् ने अकस्मात् कहा-"हट जाओ, भिक्षु ! मेरे सामने से हट जाओ।" आनन्द ने तत्काल पूछा -- “ऐसा क्यों भगवन् ?' भगवान् ने कहा-"आनन्द ! दशों लोकों के देवता
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