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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन खण्ड:१ निर्वाण-कल्याणक भगवान् की अन्त्येष्टि के लिए सुरों के, असुरों के सभी इन्द्र अपने-अपने परिवार से वहाँ पहुँचे। सबकी आँखों में आंसू थे। उनको लगता था-हम अनाथ हो गये हैं। शक के आदेश से देवता नन्दन-वन आदि से गोशीर्ष चन्दन लाये। क्षीर-सागर से जल लाये । इन्द्र ने भगवान के शरीर को क्षीरोदक से स्नान कराया, विलेपन आदि किये, दिव्य वस्त्र ओढाये। तदनन्तर भगवान् के शरीर को दिव्य शिविका में रखा। इन्द्रों ने वह शिविका उठाई। देवों ने जय-जय ध्वनि के साथ पुष्प-वृष्टि की। मार्ग में कुछ देवांगनाएं और देव नृत्य करते चलते थे, कुछ देव मणिरत्न आदि से भगवान् की अर्चा कर रहे थे। श्रावक-श्राविकाएं भी शोक-विह्वल होकर साथ-साथ चल रहे थे। यथास्थान पहँच कर शिविका नीचे रखी गई। भगवान के शरीर को गोशीर्ष चन्दन की चिता पर रखा गया। अग्निकुमार देवों ने अग्नि प्रकट की। वायुकुमार देवों ने वायु प्रचालित की। अन्य देवों ने घृत और मधु के घट चिता पर उड़ेले । जब प्रभु का शरीर भस्मसात् हो गया, तो भेषकुमार देवों ने क्षीर-सागर के जल से चिता शान्त की। शकेन्द्र तथा ईशानेन्द्र ने ऊपर की दा बाई दाढ़ों का संग्रह किया। चमरेन्द्र और बलीन्द्र ने नीचे की दाढ़ों का संग्रह किया। अन्य देवों ने अन्य दाँत और अस्थि खण्डों का संग्रह किया। मनुष्यों ने भस्म लेकर सन्तोष माना। अन्त में चिता-स्थान पर देवताओं ने रत्नमय स्तूप की संघटना की। दीपमालोत्सव भगवान का जिस दिन परिनिर्वाण हुआ, देव और देवियों के गमनागमन से भू-मण्डल आलोकित हुआ। मनुष्यों ने भी दीप संजोये। इस प्रकार दीप-माला पर्व का प्रचलन हुआ। भगवान् का जिस रात को परिनिर्वाण हुआ, उस रात को सूक्ष्म कुंथु जाति का उद्भव हुआ । यह इस बात का संकेत था कि भविष्य में सूक्ष्म जीव-जन्तु बढ़ते जायेंगे और संयम दुराराध्य होता जायेगा। अनेक भिक्षु-भिक्षुणियों ने इस स्थिति को समझ कर उस समय आमरण अनशन किया। १. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग १३ के आधार से। २. कप्पसुत्त, सू० १३०-१३१ । ३. सौभाग्यपञ्चम्यादि पर्व कथा संग्रह, पत्र १००-११० । ४. कप्पसुत्त, सू० १३६-३७ । ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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