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________________ ३३४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन प्रश्न चर्चाएँ भगवान् महावीर की यह अन्तिम देशना सोलह प्रहर की थी ।' भगवान् छट्ट. भक्त से उपोसित थे । देशना के अन्तर्गत अनेक प्रश्न- चर्चाएं हुईं। राजा पुण्यपाल ने अपने ८ स्वप्नों का फल पूछा । उत्तर सुनकर संसार से विरक्त हुआ और दीक्षित हुआ । हस्तिपाल राजा भी प्रतिबोध पा कर दीक्षित हुआ । [खण्ड : १ इन्द्रभूति गौतम ने पूछा - "भगवन् ! आपके परिनिर्वाण के पश्चात् पाँचवाँ आरा क लगेगा ?" भगवान् ने उत्तर दिया- "तीन वर्ष साढ़े आठ मास बीतने पर ।" गौतम के प्रश्न पर आगामी उत्सर्पिणी-काल में होने वाले तीर्थङ्कर, वासुदेव, बलदेव, कुलकर आदि का भी नाम-ग्राह परिचय भगवान् ने दिया । गणधर सुधर्मा ने पूछा - "भगवन् ! कैवल्य रूप सूर्य कब तक अस्तंगत होगा ? " भगवान् ने कहा – “मेरे से बारह वर्ष पश्चात् गौतम सिद्ध गति को प्राप्त होगा, मेरे से बीस वर्ष पश्चात् तुम सिद्ध-गति प्राप्त करोगे, मेरे से चौसठ वर्ष पश्चात् तुम्हारा शिष्य जम्बू अनगार सिद्ध-गति को प्राप्त करेगा । वही अन्तिम केवली होगा । जम्बू के पश्चात् क्रमशः प्रभव, शय्यम्भव, यशोभद्र, संभूतिविजय, भद्रबाहु, स्थूलभद्र, चतुर्दश पूर्वधर होंगे। इनमें से शय्यम्भव पूर्व - ज्ञान के आधार पर दसवेयालिय आगम की रचना करेगा । ४ शक्र द्वारा आयु वृद्धि की प्रार्थना जब महावीर के परिनिर्वाण का अन्तिम समय निकट आया, इन्द्र का आसन प्रकम्पित हुआ। देवों के परिवार से वह वहाँ आया । उसने अश्रुपूरित नेत्रों से महावीर को निवेदन किया--"भगवन् ! आपके गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान में हस्तोत्तरा नक्षत्र था । इस समय उसमें भस्म - ग्रह संक्रान्त होने वाला है। आपके जन्म-नक्षत्र आकर वह ग्रह दो सहस्र वर्षों तक आपके संघीय प्रभाव के उत्तरोत्तर विकास में बहुत बाधक होगा। दो सहस्र वर्षों के पश्चात् जब वह आपके जन्म-नक्षत्र से पृथक् होगा, तब श्रमणों का, निर्ग्रन्थों का उत्तरोत्तर पूजा - सत्कार बढ़ेगा । अतः जब तक वह आपके जन्म-नक्षत्र में संक्रमण कर रहा है, तब तक आप अपने आयुष्य बल को स्थित रखें। आपके साक्षात् प्रभाव से वह सर्वथा निष्फल हो जायेगा ।" इस अनुरोध पर भगवान् ने कहा- - "शक्र ! आयुष्य कभी बढ़ाया नहीं १. ( क ) षोडश प्रहरान् यावद् देशनां दत्तवान् । – सौभाग्यपञ्चम्यादि पर्व कथा संग्रह, पत्र १०० । (ख) सोलस प्रहराइ देसणं करेइ ! Jain Education International 2010_05 २. कल्पसूत्र, सू० १४७ ; नेमिचन्द्र कृत महावीर चरित्र, पत्र ६६ । ३. सौभाग्यपञ्चम्यादि पर्व, कथा संग्रह, पत्र १०० १०२ । ४. सौभाग्यपञ्चम्पादि पर्व, कथा संग्रह, पत्र १०६ । इस ग्रन्थ के रचयिता ने महावीर की इस भविष्यवाणी को क्रमशः हेमचन्द्राचार्य तक पहुँचा दिया है । For Private & Personal Use Only - विविधतीर्थंकल्प, पृ० ३६ । www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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