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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड :
जिससे पृथ्वी में सरसता बढ़ेगी। ये पाँचों ही मेघ सात-सात दिन तक निरन्तर बरसने वाले
होंगे।
"वातावरण फिर अनुकूल बनेगा। मनुष्य उन तट-विवरों से निकल कर मैदानों में बसने लगेंगे। क्रमशः उनमें रूप, बुद्धि, आयुष्य आदि की वृद्धि होगी। दुःषम-सुषमा नामक तृतीय आरे में ग्राम, नगर आदि की रचना होगी। एक-एक कर तीर्थङ्कर होने लगेंगे। इस उत्सर्पिणी-काल के चौथे आरे में योगलिक-धर्म का उदय हो जायेगा। मनुष्य युगल रूप में पैदा होंगे, युगल रूप में मरेंगे। उनके बड़े-बड़े शरीर और बड़े-बड़े आयुष्य होंगे। कल्पवृक्ष उनकी आशापूर्ति करेंगे। आयुष्य और अवगाहना से बढ़ता हुआ पाँचवाँ और छठा आरा आयेगा । इस प्रकार यह उत्सर्पिणी-काल समाप्त होगा। एक अवसर्पिणी और एक उत्सर्पिणी काल का एक काल-चक्र होगा। ऐसे काल-चक्र अतीत में होते रहे हैं और अनागत में होते रहेंगे। जो मनष्य धर्म की वास्तविक आराधना करते हैं, वे इस काल-चक्र को तोड़ कर मोक्ष प्राप्त करते हैं, आत्म-स्वरूप में लीन होते हैं।"२
भगवान् महावीर ने अपना यह अन्तिम वर्षावास भी पावापुरी में ही किया। वहीं हस्तिपाल नामक राजा था। उसकी रज्जुक सभा' (लेखशाला) में वे स्थिरवास से रहे। कार्तिक अमावस्या का दिन निकट आया। अन्तिम देशना के लिए अन्तिम समवसरण की रचना हुई। शक ने खड़े होकर भगवान् की स्तुति की। तदनन्तर राजा हस्तिपाल ने खड़े होकर स्तुति की। अन्तिम देशना व निर्वाण
भगवान् ने अपनी अन्तिम देशना प्रारम्भ की। उस देशना में ५५ अध्ययन पुण्य-फल विपाक के और ५५ अध्ययन पाप-फल विपाक के कहे; वर्तमान में जो सुख-विपाक और दुःखविपाक नाम से आगम रूप हैं। ३६ अध्ययन अपृष्ट व्याकरण के कहे५, जो वर्तमान में
१. क्रमश: दो मेघों के बाद सात दिनों का 'उघाड़' होगा। इस प्रकार तीसरे और चौथे मेघ के पश्चात् फिर सात दिनों का 'उघाड़' होगा। कुल मिला कर पांचों मेघों का यह ४६ दिनों का क्रम होगा।
-जम्बूदीवपण्णती सुत्त, वक्ष २, काल अधिकार। २. नेमिचन्द्र सूरि कृत महावीर चरियं के आधार से । ३. इसका अर्थ शुल्क-शाला भी किया जाता है। ४. समवायांग सूत्र, सम० ५५; कल्पसूत्र, सू० १४७ । ५. कल्पसूत्र, सू० १४७; उत्तराध्ययन चूर्णि, पत्र २८३। उत्तराध्ययन के अन्तिम अध्ययन की अन्तिम गाथा भी इस बात को स्पष्ट करती है
__इइ पाउकरे बुद्धे, नायए परिनिव्वुए।
छत्तीसं उत्तरज्झाए, भवसिद्धीयसम्मए। यह विशेष उल्लेखनीय है कि यहाँ महावीर को 'बुद्ध' भी कहा गया है।
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