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इतिहास और परम्परा]
परिनिर्वाण
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व दुर्जन राजा जैसे होने लगेंगे। मत्स्य-न्याय से सबल दुर्बल को सताता रहेगा। भारतवर्ष बिना पतवार को नाव के समान डांवाडोल स्थिति में होगा। चोर अधिक चोरी करेंगे, राजा अधिक कर लेगा व न्यायाधीश अधिक रिश्वत लेंगे। मनुष्य धन-धान्य में अधिक आसक्त होगा।
"गुरुकुलवास की मर्यादा मिट जायेगी। गुरु शिष्य को शास्त्र-ज्ञान नहीं देंगे। शिष्य गुरुजनों की सेवा नहीं करेंगे । पृथ्वी पर क्षुद्र जीव-जन्तुओं का विस्तार होगा। देवता पृथ्वी से अगोचर होते जायेंगे । पुत्र माता-पिता की सेवा नहीं करेंगे; कुल वधुएँ आचार-हीन होंगी। दान, शील, तप और भावना की हानि होगी। भिक्षु-भिक्षुणियों में पारस्परिक कलह होंगे। झूठे तौल-माप का प्रचलन होगा। मंत्र, तंत्र, औषधि, मणि, पुष्प, फल, रस, रूप, आयुष्य, ऋद्धि, आकृति, ऊँचाई; इन सब उत्तम बातों में ह्रास होगा।
"आगे चल कर दुःषम-दुषमा नामक छठे आरे में तो इन सब को अत्यन्त हानि होगी। पंचम दुःषमा आरे के अन्त में दुःप्रसह नामक आचार्य होंगे, फल्गुश्री साध्वी होगी, नागिल श्रावक होगा, सत्यश्री श्राविका होगी। इन चार मनुष्यों का ही चतुर्विध संघ होगा। विमिलवाहन और सुमक नामक क्रमशः राजा और मंत्री होंगे। उस समय मनुष्य का शरीर दो हाथ परिमाण और आयुष्य बीस वर्ष का होगा। उस पंचम आरे के अन्तिम दिन प्रातः काल चारित्रधर्म, मध्याह्न में राज-धर्म और अपराह्न में अग्नि का विच्छेद होगा।
२१००० वर्ष के पंचम दुःषम आरे के व्यतीत होने पर इतने ही वर्षों का छठा दुःषम दुःषमा आरा आयेगा। धर्म, समाज, राज-व्यवस्था आदि समाप्त हो जायेंगे। पिता-पुत्र के व्यवहार भी लुप्त-प्रायः होंगे। इस काल के आरम्भ में प्रचण्ड वायु चलेगी तथा प्रलयंकारी मेघ' बरसेंगे। इससे मानव और पशु बीज-मात्र ही शेष रह जायेंगे । वे गंगा और सिंधु' के तट-विवरों में निवास करेंगे। मांस और मछलियों के आधार पर वे अपना जीवन-निर्वाह करेंगे।
"इस छठे आरे के पश्चात् उत्सर्पिणी काल-चक्रार्घ का प्रथम आरा आयेगा । यह ठीक वैसा ही होगा, जैसा अवसर्पिणी काल-चक्रार्घ का छठा आरा था। इसका दूसरा आरा उसके पंचम आरे के समान होगा। इसमें शुभ का प्रारम्भ होगा। इसके आरम्भ में पुष्कर संवर्तक. मेघ बरसेगा, जिससे भूमि की ऊष्मा दूर होगी। फिर क्षीर-मेघ बरसेगा, जिससे धान्य का तद्भव होगा। तीसरा घृत-मेघ बरसेगा, जो पदार्थों में स्निग्धता पैदा करेगा। चौथा अमतमेघ बरसेगा, इससे नाना गुणोपेत औषधियां उत्पन्न होंगी। पाँचवाँ रस-मेघ बरसेगा,
१. भगवती सूत्र, शतक ७, उद्देशक ६ में इन मेघों को अरसमेघ, विरसमेघ, क्षारमेघ, खट्टमेघ, ___ अग्निमेघ, विज्जुमेष, विषमेघ, अशनिमेघ आदि नामों से बताया है। २. उस समय गंगा और सिंधु का प्रवाह रथ-मार्ग जितना ही विस्तृत रह जायेगा।
-भगवती सूत्र, शतक ७, उद्देश०६।
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