________________
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १ है। इसका अर्थ यह भी नहीं कि महापरिनिव्वानसत्त बहुत अर्वाचीन है। दोनों प्रकरणों की भाव, भाषा और शैली से भी उनकी काल-विषयक निकटता व्यक्त होती है। आलंकारिकता और अतिशयोक्तिवाद भी दोनों में बहुत कुछ समान है।
महावीर का निर्वाण-प्रसंग बहुत संक्षिप्त व कहीं-कहीं अक्रमिक-सा प्रतीत होता है। कुछ घटनाएँ काल-क्रम की शृखला में जुड़ी हुई-सी प्रतीत नहीं होती। बहुत सारी घटनाएँ केवल यह कह कर बता दी गई हैं---"उस रात को ऐसा हुआ।" बुध का निर्वाण-प्रसंग अपेक्षाकृत अधिक सुयोजित लगता है। वह विस्तृत भी है।
प्रस्तुत प्रकरण में महावीर और बुद्ध; दोनों के निर्वाण-प्रसंग क्रमशः दिये जाते हैं। मूल प्रकरणों को संक्षिप्त तो मुझे करना ही पड़ा है। साथ-साथ यह भी ध्यान रखा गया है कि प्रकरण अधिक से अधिक मूलानुरूपी रहे। महावीर के निर्वाण-प्रसंग में कप्पसुत्त के अतिरिक्त भगवती, जम्बूदीवपण्णत्ती, सौभाग्यपंचम्यादि पूर्व कथा संग्रह, महावीर चरियं आदि ग्रन्थों का भी आधार लेना पड़ा है। बुद्ध के निर्वाण-प्रसंग में महापरिनिवाण सुत्त ही मूलभूत आधार रहा है । महत्त्वपूर्ण उक्तियों के मूल पाठ भी दोनों प्रसंगों के टिप्पणी में दे दिये गये हैं।
महावीर
अन्तिम वर्षावास
. राजगृह से विहार कर महावीर अपापा (पावापुरी') आये । समवसरण लगा। भगवान् ने अपनी देशना में बताया
"तीर्थङ्करों की वर्तमानता में यह भारतवर्ष धन-धान्य से परिपूर्ण, गांवों और नगरों से व्याप्त स्वर्ग-सदृश होता है । उस समय गांव नगर जैसे, नगर देवलोक जैसे, कौटुम्बिक राजा जैसे और राजा कुबेर जैसे समृद्ध होते हैं। उस समय आचार्य इन्द्र समान, माता-पिता देव समान, सास माता समान और श्वसुर पिता समान होते हैं । जनता धर्माधर्म के विवेक से युक्त, विनीत, सत्य-सम्पन्न, देव और गुरु के प्रति समर्पित और सदाचार-युक्त होती है। विज्ञजनों का आदर होता है। कुल, शील तथा विद्या का अंकन होता है। ईति, उपद्रव आदि नहीं होते । राजा जिन-धर्मी होते हैं।
"अब जब तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, वासुदेव आदि अतीत हो जायेंगे, कैवल्य और मनःपर्यव ज्ञान का भी विलोप हो जायेगा, तब भारतवर्ष की स्थिति क्रमशः प्रतिकूल ही होती जायेगी। मनुष्य में क्रोध आदि बढ़ेंगे; विवेक घटेगा; मर्यादाएँ छिन्न-भिन्न होंगी; स्वैराचार बढ़ेगा; धर्म घटेगा; अधर्म बढेगा। गाँव श्मशान जैसे, नगर प्रेत-लोक जैसे, सज्जन दास जैसे
१. यह कौन-सी पावा थी, कहाँ थी, आदि वर्णन के लिए देखें, 'काल-निर्णय' प्रकरण के
अन्तर्गत, 'महावीर का निर्वाण किस पावा में ?'
___Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org