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महावीर का परिनिर्वाण पावा में और बुद्ध का परिनिर्वाण कुशीनारा में हुआ। दोनों क्षेत्रों की दूरी के विषय में दीघ निकाय - अट्ठकथा ( सुमंगलविलासिनी ) बताती है - पावानगरतो तो गावतानि कुसिनारानगरं अर्थात् पावानगर से तीन गव्यूत ( तीन कोस) कुसिनारा था । बुद्ध पावा से मध्याह्न में बिहार कर सायंकाल कुसिनारा पहुँचते हैं । वे रुग्ण थे, असक्त थे; विश्राम ले लेकर वहाँ पहुँचे। इससे भी प्रतीत होता है कि पावा से कुशीनारा बहुत ही निकट था । कपिलवस्तु ( लुम्बिनी) और वैशाली (क्षत्रिय - कुण्डपुर ) के बीच २५० मील की दूरी मानी जाती है ।' जन्म की २५० मील की क्षेत्रीय दूरी निर्वाण में केवल ६ ही मील की रह गई । कहना चाहिए, साधना से जो निकट थे, वे क्षेत्र से भी निकट हो गये ।
परिनिर्वाण
दोनों की ही अन्त्येष्टि-क्रिया मल्ल-क्षत्रियों द्वारा सम्पन्न होती है । महावीर के निर्वाण प्रसंग पर नौ मल्लकी, नौ लिच्छवी; अठारह काशी - कौशल के गणराजा पौषध-व्रत में होते हैं और प्रातःकाल अन्त्येष्टि-क्रिया में लग जाते हैं । बुद्ध के निर्वाण-प्रसंग पर आनन्द कुशीनारा में जाकर संस्थागार में एकत्रित मल्लों को निर्वाण की सूचना देते हैं । आनन्द ने बुद्ध के निर्वाण के लिए कुशीनारा को उपयुक्त भी नहीं समझा था; इससे प्रतीत होता है कि मल्ल बुद्ध की अपेक्षा महावीर के अधिक निकट रहे हों ।
इन्द्र व देव-गण दोनों ही प्रसंगों पर प्रमुखता से भाग लेते हैं । महावीर की चिता को अग्निकुमार देवता प्रज्वलित करते हैं और मेघकुमार देवता उसे शान्त करते हैं । बुद्ध की चिता को भी मेघकुमार देवता शान्त करते हैं। दोनों के ही दाढ़ा आदि अवशेष ऊर्ध्वलोक और पाताल लोक के इन्द्र ले जाते हैं। दोनों ही प्रसंगों पर इन्द्र व देवता शोकातुर होते हैं । इतना अन्तर अवश्य है कि महावीर की अन्त्येष्टि में देवता ही प्रमुख होते हैं, मनुष्य गौण । बुद्ध की अन्त्येष्टि में दीखते रूप में सब कुछ मनुष्य ही करते हैं, देवता अदृष्ट रह कर योगभूत होते हैं; देवता क्या चाहते हैं, कैसा चाहते हैं, यह अर्हत् भिक्षु मल्लों को बताते रहते हैं । देवताओं के सम्बन्ध में बौद्धों की उक्ति परिष्कारक लगती है ।
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१. राहुल सांकृत्यायन, सूत्रकृतांग सूत्र की भूमिका, पृ० १; प्र० सूत्रागम प्रकाशन समिति, गुड़गांव, १६६१ ।
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