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________________ ३२६ आगम और त्रिपिटक: एक अनशीलन [खण्ड : १ जितशत्रु, सिंह और चेटक ___डॉ० हर्नले ने अपने उवासगदसाओ आगम के अनुवाद में वाणिज्य ग्राम के राजा जितशत्रु और चेटक को एक ही बता दिया है, पर यह यथार्थ नहीं है। वैशाली-गणतन्त्र में जब ७७०७ पृथक्-पृथक् राजा थे, तब उन दोनों को एक मानने का कोई कारण नहीं रह जाता। डॉ० ओटो स्टीन ने भी इस विषय को अनेक प्रकार से स्पष्ट किया है।' कुछ लोग कल्पना करते हैं कि बौद्ध-परम्परा में उल्लिखित सिंह सेनापति और जनपरम्परा में उल्लिखित राजा चेटक एक ही व्यक्ति थे। इस धारणा का आधार संभवतः यह हो सकता है कि तिब्बती परम्परा के अनुसार राजा बिम्बिसार की रानी वासवी की सेनापति की पुत्री थी और वही अजातशत्रु की माता थी। पर, इस बात की पुष्टि तिब्बती परम्परा के अतिरिक्त और कहीं से नहीं होती। बिम्बिसार का श्वसुर और अजातशत्रु का नाना सिंह सेनापति होता, तो त्रिपिटक-साहित्य में अवश्य इस सम्बन्ध का उल्लेख मिलता; अतः तिब्बती अनुश्रुति का एक उत्तरकालिक दन्तकथा से अधिक कोई महत्त्व नहीं ठहरता। इसके अतिरिक्त बौद्ध साहित्य में सिंह को सर्वत्र 'सेनापति' कहा है, जबकि चेटक वैशालीगणराज्य का राजा था। यह भी सम्भव नहीं है कि राजा को ही सेनापति कह दिया हो; क्योंकि तत्कालीन व्यवस्था में राजा और सेनापति का स्थान सर्वथा पृथक-पृथक् बताया गया है। डॉ. ज्योति प्रसाद जैन का कहना है-"महाराजा चेटक के दस पुत्र थे, जिनमें से ज्येष्ठ पुत्र सिंह अथवा सिंहभद्र वज्जिगण के प्रसिद्ध सेनापति थे।"५ जीवन-परिचय राजा चेटक के जीवन का अधिकतम परिचय जैन-आगम निरयावलिया और भगवती में मिलता है, जो 'अजातशत्रु कूणिक' प्रकरण के अंतर्गत लिखा ही जा चुका है। अन्य राजा उक्त राजाओं के अतिरिक्त अनेक राजाओं का उल्लेख दोनों ही परम्पराओं में आता है। उनमें से कुछ-एक राजाओं का वर्णन 'भिक्षु-संघ और उसका विस्तार' प्रकरण में लिखा १. Jinist Studies, Ed by Muni Jina vijayji, Pub. by Jain Sahitya Sansodhka Studies, Ahmedabad, 1948. २. उदाहरणार्थ देखें, जयभिक्खु लिखित गुजराती उपन्यास, नरकेसरी, पृ० २३४ टिप्पणी। ३. Rokhill, Life of Buddha p. 63. तथा देखें, इसी प्रकरण के अन्तर्गत 'अजात___ शत्रु कूणिक।' ४. उदाहरणार्थ देखें, 'त्रिपिटकों में निगंठ व निगंठ नातपुत्त' प्रकरण के अंतर्गत 'सिंह सेनापति' का प्रसंग। ५. भारतीय इतिहास : एक दृष्टि, पृ० ५६ । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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