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________________ इतिहास और परम्परा अनुयायी राजा ३२५ चेटक के निर्ग्रन्थ उपासक होने का कहीं भी उल्लेख नहीं है । आवश्यक चूर्णि आदि उत्तर कालिक ग्रंथों में ही उसे श्रावक बताया गया है ।" साथ-साथ उसके निर्ग्रन्थ उपासक होने में जैन व जैनेतर परम्परा में कोई विरोधी प्रमाण नहीं मिलता । इस स्थिति में वह निर्विवाद रूप से ही जैन राजा माना जा सकता है । परिवार भगवान् महावीर की माता त्रिशला राजा का चेटक की सगी बहन थी । उसकी कन्याएं भी प्रख्यात राजाओं को ब्याही गईं थी और वे स्वयं भी बहुत प्रख्यात थीं । वे क्रमशः - प्रभावती वीतभय के राजा उदायन को, पद्मावती अंग देश के राजा दधिवाहन को, मृगावती इस देश के राजा शतानीक को, शिवा उज्जैन के राजा चन्ड प्रद्योत को, ज्येष्ठा महावीर के भ्राता नन्दीवर्धन को और चेलना मगध के राजा बिम्बिसार को ब्याही थीं। एक कन्या सुज्येष्ठा महावीर के पास प्रव्रजित हो गई । वैशाली - गणतन्त्र चेटक का राज्य वैशाली - गणतन्त्र के नाम से प्रसिद्ध था । उस समय छोटे-बड़े अनेक गणतंत्र राज्य थे । ये 'संघ राज्य' या 'संघ' भी कहलाते थे । जातक अट्ठ कथा के अनुसार वैशाली-गणतन्त्र के ७७०७ सदस्य थे । वे सब राजा कहलाते थे । महावीर के पिता राजा सिद्धार्थ भी इनमें से एक थे; ऐसा माना गया है। पाणिनी के अनुसार इन राजाओं का अभिषेक होता था और वे अपने-अपने क्षेत्र के अधिपति होते थे । अभिषिक्त राजाओं की प्रचलित संज्ञा 'राजन्य' थी । ललित विस्तर में बताया गया है कि लिच्छवी परस्पर एक-दूसरे को छोटा या बड़ा नहीं मानते थे । सभी समझते - अहं राजा, अहं राजा । प्रत्येक राजा के अपने-अपने उपराजा, सेनापति, माण्डारिक आदि होते । वैशाली में इनके पृथक्-पृथक प्रासाद, आराम आदि थे । ७७०७ राजाओं की शासन - सभा 'संघ सभा' कहलाती थी और इनका गणतन्त्र ' वज्जी - संघ' या 'लिच्छत्री - संघ' कहलाता था । गणतंत्र में नौ-नौ लिच्छवियों की दो उपसमितियाँ थीं। एक न्याय -कार्य को संभालती थी और एक परराष्ट्र कार्य को । इस दूसरी समिति ने ही मल्लकी, लिच्छवी और काशीकोशल के गणराजाओं का संगठन बनाया था, जिसके अध्यक्ष महाराज चेटक थे 1 १. (क) सो चेडवो सावओ । — आवश्यक चूर्णि, उत्तरार्ध, पत्र १६४ । (ख) चेटकस्तु श्रावको । - त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र, १०-६-१८८ । २. हिन्दू सभ्यता, पृ० १६३ । ३. भाग १, पृ० ३३६; (भारतीय ज्ञानपीठ, काशी) । ४. तीर्थंकर महावीर, भा० १, पृ० १६ । ५. पाणिनि व्याकरण, ६।२।३४ । ६. ३।२३ । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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