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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : १
सामने कर दिया । "यह अंगुलिमाल ! " इतना जानते ही राजा भयभीत हुआ, रोमांचित हुआ; स्तब्ध हुआ; उसके शरीर से स्वेद बह निकला। बुद्ध ने कहा- राजा ! डरो मत । अब इससे तुम्हें भय नहीं है ।" वस्तु-स्थिति समझ लेने के पश्चात् प्रसेनजित् ने इस अद्भुत सफलता के लिए बुद्ध की भूरि-भूरि प्रशंसा की । '
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बुद्ध में अनुरक्ति के कारण
बुद्ध के द्वारा यह पूछे जाने पर, "राजन् ! मुझ में ही तुम इतने अनुरक्त क्यों रहते हो ?" प्रसेनजित् ने मुख्यतः दो उत्तर दिये
१. "अनेक संन्यासियों को जानता हूँ जो २० से ४० वर्ष तक गृह त्यागी रहकर पुनः गृहस्थ जीवन में लौट आये और विषय भोग में पड़ गये । परन्तु किसी बौद्ध भिक्षु को ऐसा करते मैंने नहीं देखा । मैंने पिता, माता और पुत्र को तथा राजाओं और उनके सामन्तों को परस्पर लड़ते देखा है, परन्तु, बौद्ध भिक्षुओं को सदा शान्ति और मेल से रहते पाया है । मैंने ऐसे संन्यासियों को देखा है, जो रुग्ण होकर पीले पड़ गये हैं, परन्तु बौद्ध भिक्षुओं में किसी को ऐसा नहीं पाया। मैंने न्यायालयों में लोगों को अनर्गल प्रलाप करते हुए सुना है, किन्तु, जिस सभा में बुद्ध का प्रवचन होता है, उसमें मैंने कभी किसी को खाँसते हुए भी नहीं सुना । वहाँ कोई प्रश्न भी नहीं करता, जैसे कि मैंने अन्य धर्माचार्यों की सभा में लोगों को करते देखा है ।"
२. " भगवान् भी क्षत्रिय हैं, मैं भी क्षत्रिय हूं, भगवान् भी कोसलक (= कोसलवासी, कोसल - गोत्रज) हैं, मैं भी कोसलक हूँ । भगवान् भी अस्सी वर्ष के, मैं भी अस्सी वर्ष का । इसलिए योग्य ही है, भगवान् का परम सम्मान करना, विचित्र गौरव प्रदर्शित
करना । २
प्रसेनजित् की एक प्रमुख रानी मल्लिका थी। वह बुद्ध की परम भक्ता थी । बुद्ध की ओर राजा को प्रभावित करने में वह भी सदा प्रेरक रहती थी । अजातशत्रु को व्याही जाने वाली वजिरा उसकी ही कन्या थी ।
विडूडभ
प्रसेनजित् ने बुद्ध से सामीप्य बढ़ाने के निमित्त शाक्यों से एक राज- कन्या माँगी । शाक्यों ने जाति में अपने से हीन मानकर कन्या देना न चाहा; 'पर वह बलवान् है' इस भय से महानाम शाक्य की दासी से उत्पन्न कन्या वासभ- खत्तिया का विवाह उसके साथ कर दिया । प्रसेनजित् को इसका पता न चले, इसलिए महानाम स्वयं दासी-सुता के साथ भोजन करने बैठा । भोजन का प्रथम ग्रास हाथ में लेते ही पूर्व योजना अनुसार सन्देश वाहक आया और महत्वपूर्ण सन्देश का बहाना बनाकर वह भोजन किये बिना बीच में ही उठ गया । प्रसेनजित् ने उसे क्षत्रिय - कन्या मान अग्रमहिषी बना दिया। इससे विडूडम कुमार का जन्म हुआ । वह बहुत शौर्यशाली था । अल्पावस्था में ही सेनापति बता दिया गया । वह १६ वर्ष की आयु में बड़े जन-समूह के साथ अपनी ननिहाल गया । शाक्यों ने उससे छोटी आयु वाले जितने
१. मज्झिमनिकाय, अंगुलिमाल, सुत्तन्त, २।४।६ |
२. मज्झिमनिकाय, २-२-६ ।
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