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________________ इतिहास और परम्परा] अनुयायी राजा ३२३ राजपुत्र थे, उन्हें नगर के बाहर भेज दिया । बड़े-बड़े उसके स्वागत में एकत्रित हुए। विडूडभ ने एक-एककर सबको प्रणाम किया, पर उसे प्रणाम करने वाला एक भी नहीं मिला। वह मन में सन्देहशील हुआ। वहां से उसके प्रस्थान करने पर उसके बैठने का काष्ठपीठ दूध और पानी से धुलवाया। उसके कर्मकर को इस बात का पता चला। उसने श्रावस्ती जाते विडूडभ को सारा वृत्तान्त बताया। वह यह जानकर कि 'मैं दासी का पुत्र हूं, इसलिए ही किसी शाक्य ने मुझे नमस्कार नहीं किया और मेरे आसन को दूध व पानी से धुलवाया, अत्यन्त क्रोधित हुआ और प्रतिज्ञा की-'शाक्यों का समूल नाश करूंगा।' प्रसेनजित् को जब यह पता चला कि वासभ-खत्तिया दासी कन्या है, उसने उसे और विडूडभ को दास-दासियों की श्रेणी में डाल दिया। बुद्ध ने उसे समझाया-"राजन् ! वासभ खत्तिया महानाम शाक्य से उत्पन्न हुई है, विडूडम तुमसे उत्पन्न हुआ है। इस स्थिति में मातृ-कुल का कोई महत्व नहीं रह जाता।" राजा ने उन दोनों को पुनः यथास्थान स्थापित किया। दीर्घकारायण प्रसेनजित् का सेनापति था। उसके मातुल को मरवाकर उसे सेनापति बनाया था । अन्तरंग में वह राजा का विद्रोही था। एक बार प्रसेनजित् बुद्ध के दर्शनार्थ गया। बुद्ध के निकट जाते मुकुट और तलवार दीर्घकारायण के हाथ में थमाए। वह उन्हें लेकर चुपचाप वहाँ से खिसका और विडूडभ से मिलकर उसे ही राजा बना दिया। धर्म-चर्चा के पश्चात् राजा को इस बात की अवगति हुई। वह अजातशत्रु से सहयोग पाने राजगृह आया। नगर के द्वार बन्द मिले। उसने नगर के बाहर धर्मशाला में रात काटने का विचार किया। राजा थका-माँदा था। धूप और लू से उत्पीड़ित था । रात को वहीं उसका प्राणान्त हो गया। प्रातः अजातशत्रु को इस बात का पता चला, तो उसने ससम्मान उसकी अन्त्येष्टि क्रिया की। विड्डम ने शाक्यों पर चढ़ाई की। शाक्य उसके पराक्रम से घबरा गये। किसी ने मंह में तृण लिया, किसी ने नल (जलवेत)। वे बच गये। शेष दुध-मुंहे बच्चों तक का उसने संहार किया और उनके रक्त से अपना काष्ठ-पीठ धुलवाया। कहा जाता है, इस संदर्भ में ७७००० शाक्य मारे गये। इतिहासकारों का अभिमत है कि इसी घटना-प्रसंग के साथ शाक्यगणतन्त्र का अन्त हुआ।२ । वहाँ से श्रावस्ती लौटते अचीरवती नदी में अकस्मात् बाढ़ आ जाने से वह और उसकी सारी सेना निधन को प्राप्त हुई ।' है सारिपुत्त को अनागत बुद्ध का उपदेश करते बुद्ध ने प्रसेनजित् के लिए चतुर्थ बुद्ध होने की घोषणा की। १. अवदानकल्पलता; Dictionary of Pali Proper Names, vol. II p. 877 foot note. २. हिन्दू सभ्यता, पृ० १६४; Buddhist India, p. 11. ३. धम्मपद-अट्ठकथा, ४-३ के आधार से। ४. अनागतवंश; Dictionary of Pali Proper Names, vol. II, p. 174. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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