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इतिहास और परम्परा ]
अनुयायी राजा
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द्रोण भर भोजन करता था । तब कोसल राज प्रसेनजित् भोजन कर, लम्बी-लम्बी सांस लेते, जहाँ भगवान् थे, वहाँ आया और भगवान् का अभिवादन कर एक ओर बैठ गया ।
तब, कोसल- राज प्रसेनजित् को भोजन कर लम्बी-लम्बी सांस लेते देखकर भगवान् के मुँह से उस समय यह गाथा निकल पड़ी
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मनुजस सदा सतीमतो मत्तं जानतो लद्धभोजने । तनु तस्स भवन्ति वेदना सणिकं जीरति आयु पालयं ॥
सदा स्मृतिमान् रहने वाले, प्राप्त भोजन में मात्रा जानने वाले,
उस मनुष्य की वेदनायें कम होती हैं,
( वह भोजन ) आयु को पालता हुआ धीरे-धीरे हजम होता है ।
उस समय सुदर्शन माणवक राजा तब राजा ने सुदर्शन माणवक को तुम यह गाथा सीख लो। मेरे भोजन करने के प्रतिदिन तुम्हें सौ कहा पण ( = कार्षापण ) मिला करेंगे ।
के पीछे खड़ा था ।
"महाराज ! बहुत अच्छा", कह, सुदर्शन माणवक ने राजा को उत्तर दे, भगवान् से... उस गाथा को सीख, राजा के भोजन करने के समय कहा करता—
आमंत्रित किया— तात सुदर्शन ! भगवान् से समय यह गाथा पढ़ना । इसके लिए बराबर
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सदा स्मृतिमान् रहने वाले,
प्राप्त भोजन में मात्रा जानने वाले,
उस मनुष्य की वेदनायें कम होती हैं,
( वह भोजन ) आयु को पालता हुआ धीरे-धीरे हजम होता है ।
तब, राजा···क्रमशः नालि भर ही भोजन करने लगा ।
तब कुछ समय के बाद राजा का शरीर बड़ा सुडौल और गठीला हो गया । अपने गालों पर हाथ फेरते हुए राजा के मुँह से उस समय उदान के यह शब्द निकल पड़े
१. सुत्त निकाय ३-२-३ ।
“अरे ! •••भगवान् ने दोनों तरह से मुझपर अनुकम्पा की है; इस लोक की बातों में और परलोक की बातों में भी । ""
इसके अतिरिक्त त्रिपिटक - साहित्य में विविध स्थलों पर राजा प्रसेनजित् के विविध घटना-प्रसंग मिलते हैं, जिनमें से कुछ एक प्रस्तुत ग्रंथ में चर्चे किए जा चुके हैं ।
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उस युग का प्रसिद्ध डाकू अंगुलिमाल प्रसेनजित् के राजगुरु गग्ग का ही पुत्र था । अंगुलिमाल जब प्रव्रजित हो बुद्ध के पास बैठा था, तभी प्रसेनजित् ५०० अश्वारोहियों के साथ उसे खोजने जा रहा था। बुद्ध ने भिक्षु अंगुलिमाल का हाथ पकड़कर उसे प्रसेनजित् के
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