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________________ इतिहास और परम्परा ] अनुयायी राजा ३२१ द्रोण भर भोजन करता था । तब कोसल राज प्रसेनजित् भोजन कर, लम्बी-लम्बी सांस लेते, जहाँ भगवान् थे, वहाँ आया और भगवान् का अभिवादन कर एक ओर बैठ गया । तब, कोसल- राज प्रसेनजित् को भोजन कर लम्बी-लम्बी सांस लेते देखकर भगवान् के मुँह से उस समय यह गाथा निकल पड़ी - मनुजस सदा सतीमतो मत्तं जानतो लद्धभोजने । तनु तस्स भवन्ति वेदना सणिकं जीरति आयु पालयं ॥ सदा स्मृतिमान् रहने वाले, प्राप्त भोजन में मात्रा जानने वाले, उस मनुष्य की वेदनायें कम होती हैं, ( वह भोजन ) आयु को पालता हुआ धीरे-धीरे हजम होता है । उस समय सुदर्शन माणवक राजा तब राजा ने सुदर्शन माणवक को तुम यह गाथा सीख लो। मेरे भोजन करने के प्रतिदिन तुम्हें सौ कहा पण ( = कार्षापण ) मिला करेंगे । के पीछे खड़ा था । "महाराज ! बहुत अच्छा", कह, सुदर्शन माणवक ने राजा को उत्तर दे, भगवान् से... उस गाथा को सीख, राजा के भोजन करने के समय कहा करता— आमंत्रित किया— तात सुदर्शन ! भगवान् से समय यह गाथा पढ़ना । इसके लिए बराबर Jain Education International 2010_05 सदा स्मृतिमान् रहने वाले, प्राप्त भोजन में मात्रा जानने वाले, उस मनुष्य की वेदनायें कम होती हैं, ( वह भोजन ) आयु को पालता हुआ धीरे-धीरे हजम होता है । तब, राजा···क्रमशः नालि भर ही भोजन करने लगा । तब कुछ समय के बाद राजा का शरीर बड़ा सुडौल और गठीला हो गया । अपने गालों पर हाथ फेरते हुए राजा के मुँह से उस समय उदान के यह शब्द निकल पड़े १. सुत्त निकाय ३-२-३ । “अरे ! •••भगवान् ने दोनों तरह से मुझपर अनुकम्पा की है; इस लोक की बातों में और परलोक की बातों में भी । "" इसके अतिरिक्त त्रिपिटक - साहित्य में विविध स्थलों पर राजा प्रसेनजित् के विविध घटना-प्रसंग मिलते हैं, जिनमें से कुछ एक प्रस्तुत ग्रंथ में चर्चे किए जा चुके हैं । - उस युग का प्रसिद्ध डाकू अंगुलिमाल प्रसेनजित् के राजगुरु गग्ग का ही पुत्र था । अंगुलिमाल जब प्रव्रजित हो बुद्ध के पास बैठा था, तभी प्रसेनजित् ५०० अश्वारोहियों के साथ उसे खोजने जा रहा था। बुद्ध ने भिक्षु अंगुलिमाल का हाथ पकड़कर उसे प्रसेनजित् के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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