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________________ ३२० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ पिता चाहता था, मेरी कन्या जितनी सुन्दर है, उतना ही सन्दर उसे पति मिले। इस आतुरता में उसने बुद्ध से मागन्दिका के साथ पाणि-ग्रहण करने की प्रार्थना कर दी। बुद्ध ने उसे बुरा माना और कहा-"तुम इस मल-मूत्र से भरी पुतली को सुन्दर कहते हो ? मैं इसे पैर से छूना भी पसन्द नहीं करता।"१ वह मागन्दिका उदयन को ब्याही गई, पर, अपने निरादर के कारण बुद्ध के प्रति उसके मन में सदा ही घृणा का भाव रहा। उदयन उसके प्रभाव में था ही ; अतः वह बुद्ध का अनुयायी कैसे हो पाता? शरणागत उपासक होने आदि के उल्लेखों से अवश्य यह प्रतीत होता है कि शनैः शनैः बुद्ध और बौद्ध संघ के प्रति रही उदयन की घृणा मिटती गई और वह उनके निकट होता गया। ___ महावीर के पश्चात् बुद्ध २५ वर्ष जीये, २ इस स्थिति में यह अधिक सम्भव है ही कि बौद्ध भिक्षु-संघ के बढ़ते हुए प्रभाव से उदयन प्रभावित हुआ और पिण्डोल भारद्वाज के सम्पर्क से बुद्ध का अनुयायी भी बना हो। इसके पुत्र बोधिराजकुमार का वर्णन केवल त्रिपिटक-साहित्य में ही मिलता है, और उसके जनक शतानीक आदि का वर्णन आगम साहित्य में मिलता है, तो यह भी उदयन के पहले जैन और फिर बौद्ध होने का एक ठोस आधार है। प्रसेनजित् बुद्ध का अनुयायी कोसल-राज प्रसेनजित् भी महावीर और बुद्ध के समसामयिक राजाओं में एक ऐतिहासिक राजा रहा है। वह पहले वैदिक धर्म का अनुयायी था। बड़े-बड़े यज्ञ-याग कराता था । संयुत्त निकाय के अनुसार उसने एक यज्ञ के लिए ५०० बैल, ५०० बछड़े, ५०० बछड़ियां ५०० बकरियां, ५०० भेड़ आदि एकत्रित किये थे। बुद्ध के उपदेश से उन सब का बिना वध किये ही यज्ञ का विसर्जन कर दिया। इस प्रकार अनेक बार के सम्पर्क से वह बुद्ध का दृढ़ अनुयायी बन गया। यह सुविदित है ही कि बुद्ध ने अपने अन्तिम २५ वर्षावास श्रावस्ती के ही जेतवन और पूर्वाराम विहार में बिताये थे। प्रसेनजित् का बुद्ध से सतत सम्पर्क बना रहना स्वाभाविक ही था। वह बुद्ध से अनेक छोटे-बड़े प्रश्न पूछता ही रहता था। संयुत्त निकाय में एक कोसलसंयुत्त पूरा प्रसेनजित् राजा के प्रश्नों का ही है। इसी प्रकरण का एक उल्लेखनीय संस्मरण है- "उस समय कोसल-राज प्रसेनजित् १. धम्मपद अट्ठकथा, २।१; तस्मादिमां मूत्रपुरीषपूणां स्प्रष्टुं हि यत्तामपि नोत्सहेयम् । -दिव्यावदान, ३६ । २. देखें, 'काल निर्णय' प्रकरण के अन्तर्गत 'महावीर और बुद्ध की समसायिकता'। ३. बोधिराजकुमार उसकी रानी वासवदत्ता का पुत्र था और बुद्ध का परम उपासक था। विशेष विवरण देखें, मज्झिम निकाय, बोधिराजकुमार सुत्त, २।४।५; मज्झिम निकाय-अट्ठकथा, २।४।५। ४. कोसल संयुत्त, यञ सुत्त, ३-१-६ । ५. धम्मपद-अट्ठकथा, ५-१; Buddhist Legends, vol. II, p. 104 ff. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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