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इतिहास और परम्परा] अनुयायी राजा
३१७ युद्धों के अनेक उल्लेख मिलते हैं । वत्स देश के राजा उदयन और चण्ड-प्रद्योत का युद्ध-विवरण दोनों परम्पराओं में बहुत कुछ समानता से मिलता है।' इस युद्ध का पुराण-साहित्य में भी समुल्लेख है। उसी घटना-प्रसंग पर महाकवि भास ने प्रसिद्ध नाटक स्वप्नवासवदत्ता लिखा है।
__जैन परम्परा के अनुसार चण्ड प्रद्योत ने सिन्धुसौवीर के राजा उदायन के साथ, वत्स-नरेश शतानीक के साथ, मगध के राजा बिम्बिसार के साथ तथा पांचाल देश के राजा दुम्मह के साथ युद्ध किया। उदायन के साथ स्वर्ण-गुलिका दासी के लिए, शतानीक के साथ रानी मृगावती के लिए दुम्मह के साथ 'द्विमुख-अवभासक' मुकुट के लिए तथा श्रेणिक के साथ उसके बढ़ते हुए प्रभाव को न सह सकने के कारण उसने युद्ध किया। उक्त सारे ही घटनाप्रसंग रोचकता और अद्भुतता से भरे-पूरे हैं।
___ मज्झिम निकाय के अनुसार अजातशत्रु ने भी चण्ड-प्रद्योत के भय से राजगृह में किल्लाबन्दी की थी। उक्त अन्य युद्धों के उल्लेख बौद्ध-परम्परा में नहीं हैं। किस धर्म का अनुयायी?
जैन धारणा के अनुसार चण्ड-प्रद्योत जैन धर्म की आराधना तो तब आरम्भ कर देता है, जब धर्मनिष्ठ श्रावक उदायन राजा के द्वारा बन्दी-अवस्था से मुक्त किया जाता है। इससे पूर्व तो वह यही कहता था- "मेरे माता-पिता श्रावक थे।" महावीर के समवसरण में शतनीक राजा की पत्नी मृगावती तथा चण्ड प्रद्योत की शिवा आदि ८ पत्नियाँ दीक्षित हुई तब स्वयं चण्ड-प्रद्योत भी वहाँ उपस्थित था। वही उसका महावीर से प्रथम साक्षात्कार था और उसी में उसने विधिवत जैन धर्म स्वीकार किया था।"
बौद्ध मान्यता के अनुसार चण्ड-प्रद्योत को धर्म-बोध भिक्षु महाकात्यायन के द्वारा मिला । ये भिक्ष -जीवन से पूर्व चण्ड-प्रद्योत के राज-पुरोहित थे। चण्ड-प्रद्योत ने उन्हें बुद्ध को
१. धम्मपद अट्ठकथा, २-१; त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ११, श्लोक १८४
२६५ । २. कथासरित्सागर, १२।१६।६। ३. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ११,, श्लोक ४४५-५६७; उत्तराध्ययन
सूत्र, अ० १८, नेमिचन्द्र कृत वृत्ति; भरतेश्वर-बाहुबली वृत्ति, भाग १, पत्र १७७-१। ४. त्रिषष्टिशालाकापुरुषचरित्र, पर्व १०. सर्ग ११, श्लोक १८४-२६५ । ५. वही, पर्व १०, सर्ग ११, श्लोक १७२-२६३ । ६. उत्तराध्ययन सूत्र, अ०६, नेमिचन्द्र कृत टीका ७. ३-१-८, गोपक भोग्गलान सुत्त। ८. ततः प्रद्योतनो राजा जैन धर्म शुद्धमारराध ।
-मरतेश्वर-बाहुबली-वृत्ति, भाग १, पत्र १७७ । ६. श्रावको पितरौ मम।
___ -त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, १०११११५६७ । १०. भरतेश्वर-बाहुबली-वृत्ति, द्वितीय विभाग, प० ३२३ । ११. ततश्चण्डप्रद्योतो धर्ममङ्गीकृत्य स्वपुरम् ययौ ।
-वही, २-३२३।
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