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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १ कालान्तर से फिर महावीर राजगृह के उपवन में आये। भीषण शीतकाल का समय था। एक दिन सांय श्रेणिक और चेलणा ने उपवन से आते नदी के तट पर, एक मुनि को ध्यानस्थ खड़े देखा। रात को रानी जगी। मुनि की याद आई। उसके मुंह से सहसा निकला-'आह ! वह क्या करता होगा ?" राजा ने भी यह वाक्य सुन लिया। उसके मन में रानी के प्रलि अविश्वास हुआ । प्रातःकाल भगवद्-वन्दन के लिए जाते-जाते उसने अभयकमार को आदेश दिया-'महल जला डालो। यहाँ दुराचार पलता है।" अभयकुमार ने रानियों को पृथक कर खाली महल को जला डाला।
श्रेणिक ने महावीर से जिज्ञासा की और महावीर ने उत्तर दिया- "तुम्हारी चेलणा आदि सब रानियाँ निष्पाप हैं।" राजा को अपने आदेश पर पछतावा हुआ। राजा सहसा वहाँ से चला कि कोई हानि न हो जाये। अभयकुमार रास्ते में ही मिल गया। राजा ने कहा-"तुमने महल का क्या किया ?" अभयकुमार ने उत्तर दिया-"आपके आदेशानुसार जला दिया।" राजा को अत्यन्त दुःख हुआ। अभयकुमार पर रंज भी हुआ। उसके मुँह से सहसा निकल पड़ा-"दूरे वज! सुखं मा दर्शय"--- दूर चला जा, मुंह मत दिखा। अभयकुमार ने पित-वाक्य शिरोधार्य किया और भगवान् महावीर के पास जा प्रवज्या ग्रहण की।
राजा ने महल को सम्भाला तो सब रानियाँ सुरक्षित थीं। उसे भान हुआ- "अभयकुमार दीक्षित होगा, मैं उसे रोकूँ।" राजा शीघ्रता से महावीर के पास आया, तो देखा वह तो दीक्षित हो ही गया है। अंतगडदशांग सूत्र में अभय की माता नन्दा के भी दीक्षित होने व मोक्ष जाने का उल्लेख है।२
दीक्षा के अनन्तर भिक्षु अभयकुमार ने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। 'गुणरत्न तप' किया । अत्यन्त कृशकाय हो गया। काल-धर्म को प्राप्त हो विजय अनुत्तर विमान में देव-रूप से उत्पन्न हुआ। वहाँ वह २२ सागरोपम स्थिति का भोग कर महाविदेह-क्षेत्र में उत्पन्न होगा। वहाँ से वह सिद्ध-गति प्राप्त करेगा।
उपसंहार
अभयकुमार-सम्बन्धी दोनों ओर के पुरावों को देखते हुए लगता है, क्यों न अभयकुमार और राजकुमार अभय को पृथक्-पृथक् दो व्यक्ति माना जाये ? पितृ-साम्य के अतिरिक्त अन्य सभी प्रमाण उनके दो व्यक्ति होने के पक्ष में ही माने जा सकते हैं। बौद्ध परम्परा उसे जीवक कौमार-मृत्यु का जनक मानती है, जबकि जैन परम्परा में इसका कोई आभास नहीं मिलता। इसी प्रकार एक की माता वणिक्-कन्या है, तो एक की गणिका; एक प्रधानमंत्री है,
१. भरतेश्वर बाहुबली वृत्ति, पत्र ३८-४० । २. मोदी सम्पादित, पृ० ५१। ३. स्कन्दक संन्यासी को तपः-साधना जैसा ही वर्णन अभयकुमार का है। स्कन्दक मुनि ____ का विवरण देखें-'पारिपाश्विक भिक्ष -भिक्षुणियां' प्रकरण में। ४. अनुत्तरोववाइयदसा, प्रथम वर्ग, अध्ययन १० । ५. देखें, 'प्रमुख उपासक-उपासिकाएं' प्रकरण।
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