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इतिहास और परम्परा अनुयायी राजा गया, तो लोगों ने उसका उपहास किया-"ये आये हैं, महात्यागी मुनि । इन्होंने तो धनकंचन सब छोड़ दिया है।" इस लोक-चर्चा से द्रुमक मुनि व्यथित हुआ। आकर सुधर्मा स्वामी से यह व्यतिकर कहा । द्रुमक मुनि की परीषह-निवृत्ति के लिए गणधर सुधर्मा ने अगले ही दिन विहार की ठानी । अभयकुमार को पता चला। उसके निवेदन पर विहार रुका। राजगृह में आकर एक-एक कोटि स्वर्ण-मुद्राओं की तीन राशियाँ उसने स्थापित की। नगर के लोगों को आमंत्रित किया । धन-राशि पाने के लिए सभी लोग ललचाये। अभयकुमार ने कहा-'ये तीन कोटि स्वर्ण-मुद्राएँ वह ले सकता है, जो जीवन भर के लिए स्त्री, अग्नि और पानी का परित्याग करे।" कोई आगे नहीं आया। जब अभय कुमार ने कहा- "द्रुमक मुनि कितना महान् है, उसने आजीवन स्त्री, अग्नि एवं पानी का परित्याग किया है।" इस प्रकार अभय ने वह लोक-चर्चा समाप्त की।
अभयकुमार की धर्मानुरागिता के अनेकानेक घटना-प्रसंग जैन परम्परा मे प्रचलित हैं । अभयकुमार की छींक का फल बताते हुए महावीर ने स्वयं उसे धर्मनिष्ठ कहा । अभयकुमार के संसर्ग से ही राजगृह के प्रसिद्ध कसाई कालशौरिक का पुत्र सुलसकुमार निगण्ठ-धर्म का अनुयायी बना । अभयकुमार के उपहार से ही आर्द्रककुमार प्रतिबुद्ध होकर भिक्षु बना था।
अभयकुमार की प्रव्रज्या के विषय में बताया गया है-भगवान महावीर राजगृह में आये। अभयकुमार भी वन्दन के लिए उद्यान में गया। देशना के अन्त में अभयकुमार ने पूछा-"भगवन् ! अन्तिम मोक्षगामी राजा कौन होगा ?"५ महावीर ने उत्तर दिया"वीतभयपुर का राजा उदायन, जो मेरे पास दीक्षित हुआ है, वही अन्तिम मोक्षगामी राजा है।" अभयकुमार के मन में आया -"मैं यदि राजा बन कर फिर दीक्षित बनूंगा, तो मेरे लिए मोक्ष
हाने का रास्ता ही बन्द हो जायेगा। क्यों न मैं कमारावस्था में ही दीक्षा ग्रहण करूँ !"
अभयकुमार श्रेणिक के पास आया । दीक्षा की बात उसे कही। श्रेणिक ने कहा"दीक्षा लेने के दिन तो मेरे हैं, तुम्हारे तो राज्य-ग्रहण करने के दिन हैं।" अभयकुमार के विशेष आग्रह पर श्रेणिक ने कहा-"जिस दिन मैं रुष्ट होकर तुझे कहूँ-दरे वज! मुखं मा वर्शय, उस दिन तुम प्रवजित हो जाना।"
१. धर्मरत्नप्रकरण, अभयकुमार कथा, १३० । २. विस्तार के लिये देखें, इसी प्रकरण में श्रेणिक बिम्बिसार' के अन्तर्गत निरक-गमन
व तीर्थंकर-पद'। ३. हेमचन्द्र-योगशास्त्र, स्वोपज्ञवृत्ति सहित, अ० १, श्लो० ३०, पृ० ६१-६५ । ४. विस्तार के लिए देखें, समसामयिक धर्य-नायक' प्रकरण के अन्तर्गत 'आर्द्रक मुनि'। ५. यह भी माना जाता है कि अभयकुमार की यह पृच्छा 'मोक्षगामी राजा' के लिए न
होकर 'मुकुट बद्ध राजा के दीक्षित होने' के विषय में थी। (देखें, अभिधान राजेन्द्र, खण्ड ३, पृ० ४८१)।
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