________________
३१२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड:१ मन में सोचे रहते हैं, जो मुझे ऐसा पूछेगे, मैं उन्हें ऐसा उत्तर दूंगा।
बुद्ध ने कहा- "राजकुमार ! मैं तुझे ही एक प्रश्न पूछता हूँ; जैसा जचे, वैसा उत्तर देना। क्या तू रथ के अंग-प्रत्यंग में चतुर है ?"
"हाँ, भन्ते ! मैं रथ के अंग-प्रत्यंग में चतुर हूँ।"
"राजकुमार ! रथ की ओर संकेत कर यदि तुझे कोई पूछे, रथ का यह कौन-सा अंग-प्रत्यंग है ? तो क्या तू पहले से ही सोचे रहता है, ऐसा पूछे जाने पर मैं ऐसा उत्तर दूंझा या अवसर पर ही यह तुझे भासित होता है ?"
भन्ते ! मैं रथिक हूँ। रथ के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग का मैं प्रसिद्ध ज्ञाता है; अत: मुझे उसी क्षण भासित हो जाता है।"
"राजकुमार ! इसी प्रकार तथागत को भी उसी क्षण उत्तर भासित हो जाता है; क्योंकि उनकी धर्म-धातु (मन का विषय) अच्छी तरह सध गई है।"
अभयराजकुमार बोला-"आश्चर्य भन्ते ! अद्भुत भन्ते ! आपने अनेक प्रकार (पर्याय) से धर्म को प्रकाशित किया है । मैं भगवान की शरण जाता हूँ, धर्म व भिक्ष-संघ की भी। आज से मुझे अञ्जलिबद्ध शरणागत उपासक स्वीकार करें।"
अभयराजकुमार के बुद्ध से साक्षात् होने का एक घटना-प्रसंग संयुत्त निकाय में अभयसुत्त' का है, जिसमें वह बुद्ध से पूरण काश्यप की मान्यता से सम्बन्धित एक प्रश्न करता
अभयकुमार को स्रोतापत्ति-फल तब मिला, जब कि वह नर्तकी की मृत्यु से खिन्न होकर बुद्ध के पास गया और बुद्ध ने उसे धर्मोपदेश किया।
थेरगाथा और उसकी अट्रकथा के अनुसार पिता की मृत्यु से खिन्न होकर अभयराजकुमार ने बुद्ध के पास प्रव्रज्या ग्रहण की और कालान्तर से अर्हत्-पद प्राप्त पाया। थेरीगाथा अट्ठकथा में यह भी बताया गया है कि भिक्षु-जीवन में उसने अपनी माता पद्मावती गणिका को उद्बोध दिया। वह भी दीक्षित हुई और उसने भी अर्हत्-पद पाया।
जैन-प्रव्रज्या
जैन धारणा के अनुसार अभयकुमार महावीर का परम उपासक था। एक बार एक द्रुमक (लकड़हारा) सुधर्मा स्वामी के पास दीक्षित हुआ । जब वह राजगृह में भिक्षा के लिए
१. ४४-६-६। २. थेरगाथा अट्ठकथा (१-५८) के अनुसार अभय को स्रोतापत्ति-फल तब मिला, जब कि
बुद्ध ने 'तालच्छिगुलुपमसुत्त' का उपदेश दिया था। ३. धम्मपद अट्ठकथा, १३-४ । ४. थेरगाथा, २६ । ५. थेरगाथा अट्ठकथा, खण्ड १, पृ० ८३-४ । ६. वही, ३१-३२।
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org