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________________ इतिहाह और परम्परा] अनुयायी राजा जन भी बोल सकता है।' यदि श्रमण गौतम नकारात्मक उत्तर दें, तो पूछना, 'आपने देवदत्त के लिए यह भविष्वाणी क्यों की, वह दुर्गतिगामी, नैरयिक, कल्पभर नरकवासी और अचिकित्स्य है । आपके इस वचन से वह कुपित (असन्तुष्ट) हुआ है।' इस प्रकार दोनों ओर के प्रश्न पूछने पर श्रमण गौतम न उगल सकेगा, न निगल सकेगा। किसी पुरुष के गले में यदि लोहे की बंसी फंस जाती है, तो वह न उगल सकता है, न निगल सकता है ; ऐसी ही स्थिति बुद्ध की होगी।" निगण्ठ नातपुत्त को अभिवादन कर अभय राजकुमार वहाँ से उठा और बुद्ध के पास गया। अभिवादन कर एक ओर बैठ गया। अभयराजकुमार ने समय देख कर सोचा"भगवान् के साथ शास्त्रार्थ करने का आज समय नहीं है । कल अपने घर पर ही शास्त्रार्थ करूँगा।" राजकुमार ने उस समय चार आदमियों के साथ बुद्ध को दूसरे दिन के भोजन का निमंत्रण दिया । बुद्ध ने मौन रह कर उसे स्वीकार किया। अभयराजकुमार अपने राजप्रासाद में चला आया। दूसरे दिन पूर्वाह्न के समय चीवर पहिन कर, पात्र व चीवर लेकर बुद्ध अभयराजकुमार के घर आये । बिछे आसन पर बैठे । अभयराजकुमार ने बुद्ध को उत्तम खाद्य भोज्य से अपने हाथ से तृप्त किया। बुद्ध के भोजन कर चुकने पर, पात्र से हाथ हटा लेने पर अभयराजकुमार एक नीचा आसन लेकर एक ओर बैठ गया और शास्त्रार्थ आरम्भ किया। बोला"भन्ते ! क्या तथागत ऐसा वचन बोल सकते हैं, जो दूसरों को अप्रिय हो ?" बुद्ध ने उत्तर दिया-"राजकुमार ! यह एकान्तिक रूप से नहीं कहा जा सकता।" उत्तर सुनते ही अभयराजकुमार बोल पड़ा-"भन्ते ! निगण्ठ नष्ट हो गये।'' बुद्ध ने साश्चर्य पूछा- "राजकुमार ! क्या तू ऐसे बोल रहा है -'भन्ते ! निगण्ठ नष्ट हो गये।' अभयराजकुमार ने दृढ़ता के साथ कहा--- "हाँ भन्ते ! बात ऐसी ही है । मैं निगण्ठ नातपुत्त के पास गया था। मुझे आपसे यह दुबारा प्रश्न पूछने के लिए उन्होंने ही प्रेरित किया था। उनका कहना था, इस प्रकार पूछने पर श्रमण गौतम न उगल सकेगा और न निगल सकेगा।" अभयराजकुमार की गोद में उस समय एक बहुत ही छोटा व मन्द शिशु बैठा था। उसे लक्षित कर बुद्ध ने कहा-"राजकुमार ! तेरे या धाय के प्रमाद से यह शिशु मुख में काठ या ढेला डाल ले तो तू इसका क्या करेगा ?" राजकुमार ने उत्तर दिया-"भन्ते ! मैं उसे निकाल लूंगा। यदि मैं उसे सीधे ही न निकाल सका, तो बाँये हाथ से सिर पकड़ कर, दाहिने हाथ से अँगुली टेढ़ी कर खून सहित भी निकाल लूंगा ; क्योंकि कुमार पर मेरी दया है।" बुद्ध ने कहा--"राजकुमार ! तथागत अतथ्य, अनर्थ-युक्त और अप्रिय वचन नहीं बोलते । तथ्य-सहित होने पर भी यदि अनर्थक और अप्रिय होता है, तो तथागत वैसा वचन भी नहीं बोलते । दूसरों को प्रिय होने पर भी जो वचन अतथ्य व अनर्थक होता है, तथागत उसे भी नहीं बोलते । जिस वचन को तथ्य व सार्थक समझते हैं, वह फिर प्रिय या अप्रिय भी क्यों न हो, कालज्ञ तथागत बोलते हैं, क्योंकि उनकी प्राणियों पर ___अभयराजकुमार ने कहा--"भन्ते ! क्षत्रिय-पण्डित, ब्राह्मण-पण्डित, गृहपति-पण्डित, श्रमण-पण्डित प्रश्न तैयार कर तथागत के पास आते हैं और पूछते हैं। क्या आप पहले से ही Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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