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________________ ३०८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड:१ अभयकुमार श्रेणिक बिम्बिसार व अजातशत्रु कूणिक से भी अधिक रहस्य का प्रश्न अभयकुमार का है । इसके विषय में दोनों परम्पराएँ अपना-अपना अनुयायी ही होने का आग्रह नहीं करतीं, प्रत्युत अपने-अपने भिक्षु-संघ में दीक्षित होने का भी निरूपण करती हैं। आगमिक उल्लेख के अनुसार वह स्वयं महावीर के पास दीक्षित होता है। श्रपिटक उल्लेख के अनुसार वह स्वयं बुद्ध के पास प्रव्रज्या पाता है। जन्म जैन परम्परा मानती है कि वह श्रेणिक मंभसार की नन्दा नामक रानी से उत्पन्न हुआ था। नन्दा वेन्नातटपुर के धनावह नामक श्रेष्ठी की कन्या थी। श्रेणिक कुमारावस्था में निर्वासित होकर वहां पहुंचा था और उसने नन्दा के साथ पाणि-ग्रहण किया था। अभयकुमार आठ वर्ष तक अपनी माता के साथ ननिहाल ही रहा। उसके पश्चात् माता व पुत्र दोनों ही राजगृह आ गए। बौद्ध-परम्परा में अभयकुमार को सर्वत्र 'अभयराजकुमार' कहा गया है । उसके अनुसार वह उज्जैनी की पद्मावती गणिका से उत्पन्न श्रेणिक बिंबिसार का पुत्र था। पद्मावती की लावण्य-ख्याति बिम्बिसार ने सुनी। वह उसकी ओर आकृष्ट हुआ। अपने मन की बात अपने पुरोहित से कही । पुरोहित की आराधना से कुम्भिर नामक यक्ष प्रकट हुआ। वह यक्ष बिम्बिसार को उज्जैनी ले गया। वहां बिम्बिसार का पद्मावती वेश्या से संसर्ग हुआ। राजकुमार अभय अपने जन्म-काल से सात वर्ष तक उज्जनी में अपनी माता के पास रहा। फिर वह राजगृह में अपने पिता के पास आ गया और अन्य राजकुमारों के साथ रहने लगा। १. (क) तस्स णं से सेणियस्स रन्नो पुत्ते नंदाए देवीए अत्तए अभए नाम कुमारे होत्था। -निरयावलिया, सू० २३ । (ख) तस्स णं सेणियस्स पुत्ते नंदाए देवीए अत्तए अभए नामं कुमारे होत्था। –णायाधम्मकहाओ श्रु० १, अ०१ । (ग) अभयस्स णाणत्तं, रायगिहे नगरे, सेणिए राया, नंदा देवी माया, सेस तहेव। -अणुत्तरोववाइयदसाओ सूत्र, १ ॥१॥ २. वेन्नातट नगर, दक्षिण की कृष्णा नदी जहां पूर्व के समुद्र में गिरती है, वहां पर होना. __ चाहिए । विशेष विवरण के लिये देखें-तीर्थंकर महावीर, भा० २, पृ० ६४१-४३ । ३. भरतेश्वर बाहुवली वृत्ति, पत्र ३६ । ४. गिल्गिट मांस्कृष्ट के अनुसार अभय राजकुमार वैशाली की गणिका आम्रपाली से उत्पन्न बिम्बसार का पुत्र था। (खण्ड ३, २, पृ. २२) श्रेणिक के अम्बपाली से उत्पन्न पुत्र का नाम मूल पालि-साहित्य में 'विमल कोडच' आता है, जो कि आगे चलकर बौद्ध भिक्षु बना। (थेरगाथा-अट्ठकथा, ६४)। ५. थेरीगाथा-अट्ठकथा, ३१-३२ । ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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