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इतिहास और परम्परा ]
अनुयायी राजा
पार कर सकता है और चक्रवर्ती बारह हो चुके हैं।" कूणिक ने कहा- - " मैं तेरहवाँ चक्रवर्ती हूँ ।" इस अनहोनी बात पर देव कुपित हुआ और उसने उसे वहीं भस्म कर दिया ।'
बौद्ध परम्परा बताती है कि राज्य लोभ से उदायीभद्र ने उसकी हत्या की ।
दोनों परम्पराओं की इस विषय में समान बात यही है कि कूणिक मर कर नरक में गया। जैन परम्परा जहाँ तमः प्रभा का उल्लेख करती है, वहाँ बौद्ध परम्परा लौहकुम्भीय नरक का उल्लेख करती है। कुल नरक जैनों के अनुसार सात हैं, बौद्धों के अनुसार आठ हैं। बौद्ध परम्परा के अनुसार अजातशत्रु अनेक भवों के पश्चात् विदित विशेष अथवा विजिताबी नामक प्रत्येक बुद्ध होकर निर्वाण प्राप्त करेगा ।
पूर्व भव
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कूणिक के पूर्व भवों की चर्चा भी दोनों परम्पराओं ने मिलती है । घटनात्मक दृष्टि से दोनों चर्चाएं सर्वथा भिन्न हैं; पर तत्त्व-रूप से वे एक ही मानी जा सकती हैं। दोनों का हार्द है - श्रेणिक के जीव ने कूणिक के जीव का किसी एक जन्म में वध किया था ।
१. ठाणांग सूत्र वृत्ति, स्था० ४, उ० ३ ; आवश्यक कूणि, उत्तरार्ध, पत्र १७६-१७७ । २. महावंश, ४। १ ।
३. दीघ निकाय अट्ठकथा, खण्ड १, पृ० २३७-३८ ।
४. रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुप्रभा, पंकप्रभा, घूमप्रभा, तमः प्रभा, महातमः प्रभा ( तमतमाप्रभा) । - भगवती, शतक १, उद्दे० ५ । ५. संजीव, कालसुत, संघात, जालरौरव, धूमरौरव, महा अवीचि, तपन, पतापन |
(जातक अट्ठकथा, खण्ड ५, पृ० २६६, २७१) । दिव्यावदान में ये ही नाम हैं, केवल जाल रौरव के स्थान पर रौरव और धूमरीरव के स्थान पर महारीरख मिलता है । (दिव्यावदान, ६७ ) । संयुत्त निकाय, अंगुत्तर निकाय तथा सुत्तनिपात में १० नरकों के नाम आये हैं --अव्बुद, निरव्वुद, अवब, अटट, अहह, कुमुद, सोगन्धिक, उप्पल, पुण्डरीक, पदुम । (सं० नि० ६-१-१०; अं. नि. ( P. T.S.), खन्ड ५, पृ० १७३; सुत्तनिपात, महावग्ग, कोकालिय सुत्त, ३।३६ । ) अट्ठकथाकार के अनुसार ये नरकों के नाम नहीं, पर, नरक में रहने की अवधियों के नाम हैं । आगमों में भी इसी प्रकार के काल-मानों का उल्लेख है । (उदाहरणार्थ देखें- भगवती सूत्र, शतक ६, उद्दे० ७ ) । बौद्ध साहित्य में अन्यत्र ५ नरकों की सूची भी मिलती है । ( मज्झिमनिकाय, देवदत्त सुत्त) तथा जातकों में स्फुट रूप से दूसरे नामों का उल्लेख भी है । 'लोहकुम्भी निरय का उल्लेख भी स्फुट नामों में है ( जातक अट्ठकथा, खण्ड ३, पृ० २२; खण्ड ५, पृ० २६६; सुत्तनिपात अट्ठकथा, खण्ड १, पृ०५९) ।
६. Dictionary of Pali Proper Names vol. 2, p. 35.
७. जैन वर्णन – निरयावलिया सूत्र, घासीलालजी महाराज कृत, सुन्दर बेघिनी टीका, पृ० १२६ - १३३; बौद्ध वर्णन - जातक अट्ठकथा, संकिच्च जातक, जातक संख्या
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