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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : १
अनुसार यह अवधि कम से कम १६ वर्षों की हो सकती है ।" बौद्ध परम्परा के अनुसार वस्सकार लगभग तीन वर्ष वैशाली में रहता है और लिच्छवियों में भेद डालता है । इन सबसे यह प्रतीत होता है कि बौद्ध परम्परा का उपलब्ध वर्णन केवल युद्ध का उत्तरार्ध मात्र है ।
रानियाँ और
पुत्र
जैन परम्परा में कूणिक की तीन रानियों के नाम मुख्यतया आते हैं- पद्मावती, धारिणी और सुभद्रा । आवश्यक चूर्णि के अनुसार कूणिक ने आठ राज- कन्याओं के साथ विवाह किया था, पर, वहाँ उनका कोई विशेष परिचय नहीं है ।
बौद्ध परम्परा में कूणिक की रानी का नाम वजिरा आता है । वह कौशल के प्रसेनजित् राजा की पुत्री थी । कूणिक के पुत्र का नाम जैन परम्परा में उदायी और बौद्ध परम्परा में उदायीभद्र आता है । जन परम्परा के अनुसार वह पद्मावती का पुत्र था और बौद्ध परम्परा के अनुसार वह वजिरा का पुत्र था । वजिरा का पुत्र होने में एक असंगति आती है । बौद्ध परम्परा के अनुसार उदायीभद्र का जन्म उसी दिन हुआ, जिस दिन श्रेणिक का शरीरान्त हुआ, जब कि वजिरा का विवाह भी श्रेणिक की मृत्यु के पश्चात् हुआ ।
मृत्यु
कूणिक ( अज्ञातशत्रु) की मृत्यु दोनों परम्पराओं में विभिन्न प्रकार से बताई गई है । जैन परम्परा मानती है - कूणिक ने महावीर से पूछा - "चक्रवती मर कर कहाँ जाते हैं ? " उत्तर मिला – “चक्रवर्ती पद पर मरने वाला सप्तम नरक तक जाता है ।"
"मैं मर कर कहाँ जाऊँगा ?"
"तुम छठे नरक में जाओगे ।"
"क्या मैं चक्रवर्ती नहीं हूँ ?" "नहीं हो ।"
कूणिक को चक्रवर्ती बनने की घुन लगी । कृत्रिम चौदह रत्न बनाये । षड्खण्ड-विजय के लिए निकला । तिमिस्रा गुफा में देवता ने रोका और कहा "चक्रवर्ती ही इस गुफा को
१. हिन्दू सभ्यता, पृ० १८६ |
२. तस्स णं कूणियस्स रण्णो पउमावई नामं देवी...
- निरग्रावलिया सुत्त, (पी० एल० वैद्य सम्पादित ) पृ० ४ ।
३. तस्स णं कूणियस्स रण्णो धारिणी नामं देवी...
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उववाई सुत्त ( सटीक ), सू० ७, पत्र २२ ।
४. वही, सू० ३३, पत्र १४४ ।
५. आवश्यक चूर्णि उत्तरार्ध, पत्र १६७ ।
६. आचार्य बुद्धघोष, सुमंगलविलासिनी, खण्ड १, पृ १३७ ॥
७. जातक अट्ठकथा, खण्ड ४, पृ० ३४३ : Encyclopaedia of Buddhism p. 317
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